अव्यवस्था: ठंड में रातभर जागना किसानों की मजबूरी, धान बेचने के लिए हर दिन लगती है टोकन के लिए लंबी लाइन


जीपीएम। छत्तीसगढ़ का अन्नदाता किसान अपने उत्पादित धान को समर्थन मूल्य में बेचने के लिए दिसंबर जनवरी की कढकड़ाती ठंड में रतजगा करने को मजबूर है। उसे अपने धान को बेचने के लिए पहले टोकन काटना होता है। उसके बाद धान बिक्री की तिथि मिलने के बाद वह अपने धान को बिक्री के लिए खरीदी केंद्र लेकर आता है। हालांकि शासन ने टोकन काटने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था भी की है। परंतु उसका प्रतिशत लिमिटेड होने के कारण किसानों को प्रतिदिन टोकन के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है टोकन के लिए वे पहले नंबर पाने को रात भर खरीदी केंद्र के बाहर रतजगा कर बैठे रहते हैं।

छत्तीसगढ़ी में कहावत है कि दूबर के दू असाढ याने गरीब आदमी को समस्या के ऊपर समस्या, कहने को तो किसान अन्नदाता कहलाता है। परंतु अन्नदाता की जो दुर्दशा हो रही है, उसकी एक बानगी देखना हो तो पेंड्रा के कृषि उपज मंडी के बाहर धान खरीदी केंद्र में आकर देखा जा सकता है। किसान अपने धान को बेचने के लिए किस तरीके से संघर्ष कर रहा है, जैसे उसने धान की फसल उपज कर कोई अपराध कर दिया हो। पेंड्रा कृषि उपज मंडी के बाहर इक_े यह किसान हाथ में कंबल, आग का अलाव जलाकर सुबह होने का इंतजार कर रहे हैं।

जब सुबह मंडी खुलेगी तब शासन द्वारा समर्थन मूल्य में खरीदी करने वाला प्रबंधक उनके नंबर के हिसाब से उन्हें किस तिथि में अपना धान लाकर बेचना है, उसकी तिथि का टोकन देगा हालांकि शासन ने प्रतिदिन 2200 क्विंटल धान खरीदने की व्यवस्था दी है। जिसमें 40 फीसदी याने 880 क्विंटल ऑनलाइन टोकन काटने की व्यवस्था है, शेष 1320 क्विंटल काउंटर पर ऑनलाइन किसान आकार कटा सकता है।

इसी 1320 क्विंटल धान का टोकन लेने के लिए किसान रात भर रतजगा करने को मजबूर है, उनकी मजबूरी का कारण भी जायज जान पड़ता है। पहला तो सभी किसान पढ़े लिखे नहीं हैं जो ऑनलाइन टोकन कटा सके और काउंटर में 1320 क्विंटल क्विंटल बचे हुए धान पर छोटे किसान टोकन काटते हैं तो इस प्रतिदिन खरीदे जाने वाले धान के कोटे में अगर कोई बड़ा दो-तीन किसान आ गए तो उनका नंबर दो-तीन दिन तक नहीं आता, ऐसे में पहले आओ पहले पाओ के चक्कर में किसान रात भर खरीदी केंद्र के बाहर रतजगा करने को मजबूर है।

जहां पर किसानों की समस्याओं के साथ-साथ खरीदी केंद्र प्रभारी से भी बातचीत की है। जिसमें किसानों ने अपनी समस्या को रखा है, जबकि खरीदी केंद्र प्रभारी ने भी बात रखते हुए कहां है कि पहले की सरकार में टोकन वेटिंग 15 दिन तक काटा जा सकता था। जबकि वर्तमान सरकार ने प्रतिदिन ही टोकन काटने की अनुमति दे रखी है, जिसके कारण किसानों को रतजगा करना पड़ रहा है।