सबसे ज्यादा वोटों से अरुण वोरा, सबसे कम वोटों से हारे पाण्डेय


भिलाई । दुर्ग जिले में 6-2 से हारने के बाद हार-जीत के आंकड़े भी कम चौंकाने वाले नहीं है। 2018 के चुनाव में जिले से महज एक सीट वैशाली नगर से भाजपा को जीत मिली थी, जबकि इस चुनाव में भाजपा ने 6 में से 4 सीटें जीतकर कांग्रेस को पटखनी दी। जिले में सबसे ज्यादा मतों से हारने का रिकार्ड इस बार कांग्रेस के कद्दावर नेता अरुण वोरा के नाम रहा। उन्हें भाजपा के एक नए चेहरे गजेन्द्र यादव से 47,076 मतों से पराजय का सामना करना पड़ा। वहीं सबसे कम मतों से हारने का रिकार्ड पिछले चुनाव की ही तरह इस बार भी भिलाई सीट में बरकरार रहा। यहां से कांग्रेस के देवेन्द्र यादव ने भाजपा के बड़े नेता प्रेमप्रकाश पाण्डेय को महज 1264 मतों से शिकस्त दी।

दुर्ग शहर सीट के बाद कांग्रेस को सबसे बड़ी पराजय वैशाली नगर क्षेत्र से मिली। यहां से भाजपा के रिकेश सेन ने कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश चंद्राकर को 40,074 मतों के बड़े अंतर से हराया। वैशाली नगर को भाजपा माइंड सीट माना जाता है। 2018 के चुनाव में जब पूरे प्रदेश से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था, तब भी इस सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। इस बार यहां से सीएम ने अपनी पसंद के प्रत्याशी के रूप में मुकेश चंद्राकर को उतारा था, लेकिन वे कोई करिश्मा करने में नाकाम रहे और जिले में दूसरी सबसे बड़ी हार मिली। भाजपा के लिए बड़ी और ऐतिहासिक जीत दुर्ग ग्रामीण सीट पर रही, जहां से युवा प्रत्याशी ललित चंद्राकर ने कांग्रेस के धाकड़ नेता और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को बड़े अंतर से पटखनी दी। ताम्रध्वज साहू यह चुनाव 16,642 मतों से हार गए। इस चुनाव को साहू बनाम कुर्मी के रूप में भी देखा जा रहा था। 2018 में साहू समाज ने कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन इस बार यह समाज भाजपा के साथ था। कांग्रेस के साथ इस सीट पर एक समस्या यह भी आई कि उसका मुख्यमंत्री खुद कुर्मी था। वैसे, ताम्रध्वज साहू के हार की एक वजह कामकाज में उनके परिवारवालों का जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप भी रही।

पाटन सीट से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं प्रत्याशी थे। भाजपा ने यहां से अपने सांसद विजय बघेल को मैदान में उतारकर चुनाव को रोचक बना दिया था। मतगणना के दौरान नतीजे भी इधर-उधर होते रहे, लेकिन अंत में भूपेश 19,723 मतों से जीत हासिल करने में कामयाब रहे। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा रहे भूपेश बघेल अपने क्षेत्र में प्रचार करने भी नहीं गए थे। बात यदि अहिवारा क्षेत्र की करें तो यहां से विधायक रहे गुरू रुद्र कुमार ने पूरे 5 साल तक सिर्फ सत्ता सुख भोगा था। उनके चुनाव जीतने की संभावना लगभग नगण्य थी, इसलिए उन्होंने क्षेत्र बदलकर चुनाव लडऩे का फैसला किया। ऐसे में कांग्रेस ने महापौर निर्मल कोसरे को प्रत्याशी बनाया, लेकिन तब तक रायता पूरी तरह से फैल चुका था। अहिवारा क्षेत्र में कांग्रेस की भद्द पिट चुकी थी। इसीलिए वहां प्रारम्भ से ही भाजपा के लिए माहौल को बेहतर माना जा रहा था। भाजपा ने यहां सतनामी समाज के राजमहंत डोमनलाल कोर्सेवाड़ा को उतारा, जो पहले भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। मतदाताओं ने उनकी सक्रियता और कार्यशैली को देखा था। ऐसे में उनकी जीत तय मानी जा रही थी। कोर्सेवाड़ा ने 25,263 मतों के बड़े अंतर से जीतकर अपनी उम्मीदवारी को सही साबित किया।