छत्तीसगढ़ के 90 विधायकों ने ली पद और गोपनीयता की शपथ, प्रोटेम स्पीकर नेताम ने दिलाई शपथ


रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सीएम विष्णुदेव साय, डिप्टी सीएम अरुण साव, विजय शर्मा, पूर्व सीएम भूपेश बघेल सहित सभी 90 विधायकों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। इस दौरान सीएम विष्णुदेव साय सहित अधिकतर विधायकों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में अपने पद की शपथ ली। इसके बाद पूर्व सीएम रमन सिंह को निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। प्रोटेम स्पीकर रामविचार नेताम ने छत्तीसगढ़ के सभी 90 विधायकों को शपथ दिलाई।

प्रतिपक्ष चरणदास महंत, डिप्टी सीएम अरुण साव, डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने भी छत्तीसगढ़ी में शपथ ली। इसके अलावा विक्रम उसेंडी, धरमजीत सिंह,  रायपुर दक्षिण से विधायक बृजमोहन अग्रवाल, लखेश्वर बघेल, दलेश्चर साहू समेत सभी विधायकों ने छत्तीसगढ़ी में शपथ ली। गुरु खुशवंत साहेब, केदार कश्यप, दंतेवाड़ा विधायक चैतराम अटामी, लता उसेंडी, खुशवंत साहेब, कांग्रेस विधायक विद्यावती सिदार संस्कृत में शपथ ली। कुरुद विधायक अजय चंद्राकर ने हिंदी में शपथ ली।

90 विधायकों के शपथ के बाद स्पीकर पद के लिए रमन सिंह के नाम पर 5 प्रस्ताव पेश किए गए। इसमें सत्तापक्ष की ओर से विष्णुदेव साय, डिप्टी सीएम विजय शर्मा, बृजमोहन अग्रवाल, भावना बोहरा, अजय चंद्राकर ने प्रस्ताव पेश किया। विपक्ष में पूर्व सीएम भूपेश बघेल, कांग्रेस विधायक दल के नेता चरणदास महंत ने रमन सिंह के विधानसभा अध्यक्ष पर प्रस्ताव पेश किया। इसके बाद रमन सिंह विधानसभा अध्यक्ष चुने गए।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा-लंबे अनुभव का मिलेगा साथ
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने डॉ रमन सिंह को सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने जाने पर आज सदन में बधाई देते हुए कहा कि डॉ. सिंह प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक और केंद्रीय मंत्री रहे हैं। मेरा सौभाग्य है कि इनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मुझे लगातार मिलता रहा है। उन्हें संसदीय परंपराओ और विधि विधायी कार्यों का लम्बा अनुभव है। उनके अनुभवों का लाभ इस सदन को मिलेगा। उन्होंने डॉ.रमन सिंह की सहज, सरल और सौम्य छवि, सबको साथ लेकर चलने की विशेषता का भी उल्लेख किया। इसके पहले प्रोटेम स्पीकर श्री रामविचार नेताम ने उनके सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचित होने की सदन में घोषणा की। मुख्यमंत्री श्री  विष्णुदेव साय और नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने परंपरा के अनुसार उन्हें अध्यक्षीय आसंदी तक पहुंचाया।