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अच्छे लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की स्पष्टता बनाए रखना बेहद जरूरी है। नहीं तो इसके अच्छे रिजल्ट नहीं होंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त की सीधी नियुक्ति गलत है। हमें अपने दिमाग में एक ठोस और उदार लोकतंत्र का हॉलमार्क लेकर चलना होगा। वोट की ताकत सुप्रीम है। इससे मजबूत पार्टियां भी सत्ता गंवा सकती हैं। इसलिए चुनाव आयोग का स्वतंत्र होना जरूरी है।’
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ के अध्यक्ष जस्टिस केएम जोसेफ ने गुरुवार को चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर फैसला सुनाते हुए यह बात कही। कोर्ट ने आदेश दिया कि PM, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और CJI का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। अब तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की पूरी प्रोसेस केंद्र सरकार के हाथ में थी।
सुनने में यह फैसला काफी सख्त और बड़ा बदलाव लाने वाला लगता है, लेकिन जमीनी सच इससे काफी अलग है।
दरअसल, चुनाव आयुक्तों पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव तक बेअसर रहेगा। वहीं, फैसला लागू होने के बावजूद घुमा-फिराकर केंद्र सरकार के पसंदीदा अफसर ही चुनाव आयुक्त बनेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी नामों की सिफारिश सरकार ही करेगी
किसे मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना है और किसे आयुक्त बनाना है, इसके लिए पहले नाम सुझाए जाते हैं। आगे भी ऐसा ही होगा। कानून मंत्रालय नाम सुझाएगा। फिर उन्हीं नामों में से किसी एक को प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का पैनल फाइनल करेगा।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं कि यहां पर भी जो नाम सरकार की तरफ से दिए जाएंगे, उनमें से ही कोई एक नाम चुना जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शायद कोई इस तरह के आरोप नहीं लगा पाएगा कि फलां मुख्य चुनाव आयुक्त मोदी ने बनाया है या सोनिया गांधी का करीबी है। मैं खुद भी दो दशक से इसी बदलाव की मांग उठाता रहा हूं।