एमआरआई मशीन को चीन की जगह अब जापान से मंगाएगा भारत


नई दिल्ली। भारत ने मेडिकल डिप्लोमेसी के जरिए एक तीर से दो निशानें साधने का बड़ा नीतिगत फैसला किया है। मेडिकल उपकरणों के लिए चीन पर निर्भरता घटाने और इसका बड़ा हिस्सा जापान से आयात करने पर चीनी कंपनियों को करोड़ों डॉलर का नुकसान होगा।

वहीं, दूसरी ओर भारत के भरोसेमंद साथी जापान की कंपनियों को भारतीय बाजार में बड़ी पैठ जमाने का मौका मिलेगा। केंद्र सरकार का मानना है कि इस फैसले से अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों के मामले में आम मरीजों को फायदा मिलेगा, क्योंकि चीनी उपकरण किफायती तो हैं पर जापानी उपकरणों के उच्चतम मापदंडों के मुकाबले कहीं भी नहीं टिक पाते।

कोरोना के बाद भारत में चीनी मेडिकल उपकरणों का आयात 57% बढ़ा है। मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, मेडिकल उपकरणों की प्रमुख श्रेणी में 2020-21 में चीन से आयात 327 मिलियन डॉलर (2,681 करोड़ रु.) था, जो बढ़कर 515 मिलियन डॉलर (4,223 करोड़ रु.) पहुंच गया। जापान ने भारत की जरूरतों को पूरा करने पर सहमति जता दी है। जी-20 के दौरान क्वाड देशों की अलग बैठक में इस मुद्दे पर निर्णायक दौर की बातचीत हुई।

चीन से हर साल 7,380 करोड़ के उपकरण आते हैं
मेडिकल टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों के अनुसार, उन्नत उपकरणों के लिए भारत, अमेरिका, यूके जैसे सभी प्रमुख देश चीन, जापान और सिंगापुर पर निर्भर हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा उपकरण चीन भेजता है और सबसे उन्नत उपकरण जापान भेजता है। भारत अभी जापान से हर साल 131 मिलियन डॉलर (1,066 करोड़ रु.) के उपकरण मंगा रहा है। जबकि, चीन से 900 मिलियन डॉलर (7,380 करोड़ रु.) के यही उपकरण आ रहे हैं। यानी 7 गुना ज्यादा।

भारत का लक्ष्य अगले पांच साल में चीन से मेडिकल उपकरणों का आयात 130 मिलियन डॉलर (1,066 करोड़ रु.) और जापान से 900 मिलियन डॉलर (7,380 करोड़ रु.) करना है। अहम बात यह भी है कि जापान के साथ द्विपक्षीय व्यापार के लिए सीमा शुल्क चीन के मुकाबले कम है।

व्यापार को हथियार बना रहा चीन, आर्थिक चोट जरूरी
रायसीना डायलॉग के दौरान चीन के खिलाफ आवाज बुलंद हुई। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने कहा कि चीन व्यापार को हथियार बना रहा है। उस पर अंकुश के लिए आर्थिक चोट जरूरी है। इस बैठक के बाद भारतीय अफसरों ने जापान से क्रिटिकल सप्लाई चेन मजबूत करने के मुद्दों पर जापानी अफसरों के साथ एक अलग बैठक की।