दुनिया का पहला 3D मेटल प्रिंटिड रॉकेट मिशन फेल, इससे पहले किसी ने नहीं बनाया

फ्लोरिडा। दुनिया के पहले 3D प्रिंटिड रॉकेट टेरेन-1 को बुधवार को फ्लोरिडा के केप कैनवरल से लॉन्च किया गया। हालांकि ये ऑर्बिट में पहुंचने से पहले ही फेल हो गया।

फ्लोरिडा। दुनिया के पहले 3D प्रिंटिड रॉकेट टेरेन-1 को बुधवार को फ्लोरिडा के केप कैनवरल से लॉन्च किया गया। हालांकि ये ऑर्बिट में पहुंचने से पहले ही फेल हो गया। कैलिफोर्निया की कंपनी रिलेटिविटी ने इस रॉकेट को बनाया है। इसमें 9 3D प्रिंटिड इंजन मौजूद हैं। रॉकेट में बतौर फ्यूल लिक्विड मीथेन का इस्तेमाल हुआ था। इस टेस्ट फ्लाइट को ‘गुड लक हैव फन’ नाम दिया गया था।

लॉन्च होने के बाद ये पहले स्टेज में कामयाब रहा। रॉकेट ने MAX-Q स्टेज भी पार की, जिसमें इस पर सबसे ज्यादा लोड होता है। इसके बावजूद करीब 4 मिनट बाद स्टेज 2 में जाने से पहले डायरेक्टर क्ले वॉकर ने वेबकास्ट पर गड़बड़ी की सूचना दी। इसके बाद रॉकेट फेल हो गया। हालांकि, गड़बड़ी क्यों हुई इसकी जानकारी सामने नहीं आई है।

तीसरी कोशिश में हुआ लॉन्च


टेरेन-1 रॉकेट को तीसरे प्रयास पर लॉन्च किया गया। इससे पहले ये 8 मार्च को लॉन्च होने वाला था लेकिन टेम्परेचर में दिक्कत होने के चलते इसे 11 मार्च के लिए पोस्टपोन कर दिया गया था। फिर 11 मार्च को फ्यूल प्रेशर में दिक्कत के चलते इस दोबारा टाल दिया गया। फिलहाल लॉन्च के वक्त इसमें कोई क्रू मेंबर या सामान नहीं मौजूद था। लेकिन ये रॉकेट आगे चलकर पृथ्वी के लोअर ऑर्बिट में 1,250 किलो का भार ले जाने में सक्षम होगा।

रिलेटिविटी के स्पेस लॉन्च की कमेंटेटर अर्वा टिजानी केली ने कहा- दुनिया में इससे पहले किसी ने भी 3D प्रिंटिड रॉकेट लॉन्च नहीं किया है। हम आज इसमें पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए लेकिन रॉकेट लॉन्चिंग इस बात का सबूत है कि भविष्य में 3D प्रिंटिड रॉकेट उड़ाना मुमकिन है।

सबसे बड़े 3D मेटल प्रिंटर्स से बनाया गया
ये रॉकेट 110 फीट (33.5 मीटर) लंबा और 7.5 फीट(2.2 मीटर) चौड़ा है। इसका 85% हिस्सा 3D प्रिंटिड है। ये दुनिया का सबसे पड़ा 3D प्रिंटिड ऑब्जेक्ट है और इसे सबसे बड़े 3D मेटल प्रिंटर्स की मदद से बनाया गया है। रिलेटिविटी कंपनी का लक्ष्य एक ऐसे रॉकेट को बनाना है जो 95% 3D प्रिंटिड हो। कंपनी के मुताबिक, इसे बनाने में सिर्फ 60 दिन का समय लगता है। इसके अलावा कंपनी एक टेरेन-R रॉकेट भी बना रही है जो करीब 20 हजार किलो का भार ले जाने में सक्षम होगा। इसे अगले साल लॉन्च किया जाएगा।