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टेक/हेल्थ न्यूज। बीते साल दिसंबर में एक कंपनी ‘एक्टोलाइफ’ ने वीडियो जारी कर ये दावा किया कि अगर किसी महिला को गर्भाशय नहीं है या कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की वजह से इसे निकलवाना पड़ा तो टेंशन की बात नहीं। इसके बावजूद ऐसी महिलाएं मां बन सकेंगी। या फिर कोई पुरुष इनफर्टिलिटी से पीड़ित है तो भी उसकी पत्नी मां बन सकेगी। बच्चे को कोख में पालने का झंझट नहीं रहेगा।
दरअसल, कंपनी का कहना है कि उसने दुनिया का पहला आर्टिफिशियल यूट्रस यानी कृत्रिम कोख तैयार की है, जिसमें पलने वाला बच्चा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की निगरानी में 9 महीने गुजारेगा। कंपनी की यह तकनीक है- ‘आर्टिफिशियल यूट्रस फैसिलिटी।’
इस तकनीक से जन्म लेने वाला बच्चा हर इन्फेक्शन से बचा रहेगा। इस तकनीक में ग्रोथ पॉड्स होते हैं, जो AI से जुड़ा यूट्रस है। सबसे पहले लैब में पुरुष के स्पर्म और महिला के एग को मिलाया जाता है। इसके बाद इसे ग्रोथ पॉड में रखा जाता है, जहां यह मशीन किसी गर्भ की तरह काम करने लगती है। महिला की बच्चेदानी की तरह ही इस कृत्रिम गर्भ में भी ‘एम्निओटिक फ्लूइड’ डाला जाता है, जिसमें बच्चा 9 महीने तक रहता है।
बच्चे को टीका लगाने से लेकर सबकुछ इस एप में
बच्चे के पैदा होने के बाद उसकी देखभाल कैसे की जाए, या वह बहुत रो रहा है तो क्या किया जाए। कुछ बड़ा होने पर उसे खाने के लिए क्या दिया जाए या फिर बच्चे की मां अपने खानपान का ध्यान कैसे रखे, जिससे बच्चे को ज्यादा से ज्यादा मां का दूध मिल सके। साथ ही बच्चे का उचित टीकाकरण कैसे और कब कराया जाए- इन सभी सवालों को जवाब देने और हर कदम पर यंग मदर्स का साथ देने के लिए ‘जननी’ मदद करेगी।
अब सवाल उठता है कि ये ‘जननी’ है कौन? यह कोई ऐप नहीं, बल्कि दुनिया में अपनी तरह का पहला ऐसा वॉट्सऐप प्लेटफॉर्म है, जो नई पीढ़ी के मां-बाप बनने वालों और न्यूक्लियर फैमिली के लिए दोस्त से लेकर बुजुर्ग दादी-नानी या मां की भूमिका निभाता है और यंग मॉम की मदद करता है।
केरल की एक टेक कंपनी ‘टोट्टो’ (Totto) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित यह ‘कडल’ सर्विस लॉन्च की है, जो वॉट्सऐप पर मिलेगी।
दुनिया में AI का हाथ पकड़कर नई पीढ़ी के दंपती अपने बच्चों के लिए आदर्श माता-पिता बनने की कोशिश में हैं। जिसके लिए वे AI बेस्ड पेरेंटिंग की मदद ले रहे हैं। AI बेस्ड पेरेंटिंग का मार्केट पूरी दुनिया में अभी करीब 5,238 करोड़ रुपए के पार जा चुका है। 2028 में इसके करीब 13 हजार करोड़ रुपए के होने की उम्मीद है।
माता-पिता के अलावा अब ‘थर्ड पेरेंट’ की भूमिका में मशीन
कर्नाटक में एक कंपनी ‘पेरेंटॉफ’ का दावा है कि हम बच्चे के लिए ‘थर्ड पेरेंट’ की भूमिका निभाएंगे। जो पेरेंट्स बच्चे की जिंदगी में आ रही मुश्किलों को नहीं समझ पाते, उन्हें समझकर हम और पेरेंट्स को समझने में मदद करेंगे। कंपनी का ऐप भी ‘पेरेंटॉफ’ नाम से ही है। इसी कंपनी ने देश में एक मशीनी इंजन ‘माई’ के जरिए 15 हजार रजिस्टर्ड पेरेंट्स से 3-16 साल की उम्र के बच्चों से जुड़े 3 लाख डेटा जुटाए हैं। जिसका आकलन करने के बाद यह पता लगाया जा सका है कि बच्चों में आक्रामक बर्ताव, बार-बार बदलता मूड और खुद पर भरोसा न कर पाने की असल वजह क्या है? नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (NIMHANS) बच्चों के टेंपरामेंट को नापने वाले अपने इस मॉडल और तकनीक को पेटेंट करा रहा है। संस्थान की प्रोफेसर और क्लिनिकल साइकोलॉजी कंसल्टेंट उमा हीरीसावे के मुताबिक, इस तकनीक से न सिर्फ पेरेंट्स की बच्चों को संभालने को लेकर रिपोर्ट बनेगी, जिसमें उनकी खामियों और उपलब्धियों का जिक्र होगा, बल्कि बच्चे क्या-कुछ सीख सकता है, इसका भी जिक्र होगा।
बच्चों को होमवर्क कराएंगी मशीन
किताब ‘द सोशल मशीन, डिजाइंस फॉर लिविंग ऑनलाइन’ के लेखक और हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में फेलो जूडिथ डोनॉथ कहते हैं कि 2030 तक इंसानों की तरह फैसले लेने वाली मशीनें यानी बॉट्स इतने बुद्धिमान हो जाएंगे कि वे ज्यादातर सामाजिक हालातों को बदलने लगेंगे। घर में पेरेंट्स ऐसे प्रशिक्षित बॉट्स की मदद से अपने बच्चों का होमवर्क ज्यादा अच्छी तरह से करा पाएंगे। बच्चों को क्या हेल्दी खाना पसंद आएगा, वो भी बना पाएंगे।
बच्चे कैसे खुश रहेंगे, इसको बताएंगी
‘म्यूज’ भी AI बेस्ड पेरेंटिंग बॉट है, जो मशीन लर्निंग प्रोग्राम के जरिए और बड़ी संख्या में डेटा जुटाकर स्मार्ट बच्चों के बारे में पेरेंट्स की समझ को डेवलप कर रही है। यह पेरेंट्स के लिए एक दोस्त जैसी है, जो यह बताएगी कि उनके बच्चे कैसे खुश रहेंगे। कम कमाई में भी बच्चों को अच्छी शिक्षा और खानपान कैसे दिया जा सकता है?
बचपन में हो नेचुरल पेरेंटिंग
BHU में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. योगेश कुमार आर्य कहते हैं कि अगर AI मशीन को अपनी मदद के लिए असिस्टेंट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं है। क्योंकि, उस दौरान पेरेंट्स बच्चे के साथ क्वॉलिटी टाइम बिता रहे हैं। अगर AI पर ही पूरी तरह पेरेंटिंग निर्भर हो जाए तो ये गलत होगा। ऐसी स्थिति में बच्चे का भावनात्मक विकास नहीं हो पाएगा। बच्चे की माता-पिता के साथ इमोशनल अटैचमेंट में कमी आएगी, चाहे पेरेंट्स का प्यार उसी तरह रहे।