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Bhilai Big Breaking : भिलाई। बहुचर्चित 165 करोड रुपए के लेनदेन के मामले में उच्च न्यायालय बिलासपुर में छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव के शपथ पत्र प्रस्तुत किए जाने के पश्चात जांच की स्थिति को सरकार के महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया। वर्मा ने बताया कि शासन की तरफ से एक अतिरिक्त एफ आई आर इस बात के लिए दर्ज की गई है कि भिलाई के यस बैंक के अनिमेष सिंह के नाम से खोले गए खाते में पैसे कहां से आए और कहां गए।
Bhilai Big Breaking : महाधिवक्ता ने बताया कि हितेश चौबे और अनिमेष सिंह दोनों के द्वारा ही एक दूसरे पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी जिसमें से एक एफ आई आर को सरकारी जांच में फर्जी पाया गया है इसलिए उसका खात्मा कर दिया गया है। जबकि एक एफआईआर अभी भी कायम है। फिलहाल हितेश चौबे और अनिमेश सिंह का पता चल गया है। याचिकाकर्ता प्रभुनाथ मिश्रा के अधिवक्ता सतीश कुमार त्रिपाठी और बी पी सिंह ने बताया कि महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा उच्च न्यायालय को गुमराह कर रहे हैं। एक तरफ उच्च न्यायालय ने हितेश चौबे और अनिमेष सिंह के विरुद्ध लुक आउट नोटिस जारी किया है।
Bhilai Big Breaking : जिसमें गिरफ्तार कर पूरे प्रकरण की जांच किया जाना आवश्यक था ।लेकिन बिना गिरफ्तारी पता नहीं कौन सी कैसी जांच हुई जिसमे एक एफ आई आर ही खत्म कर दी गई। स्वयं न्यायालय द्वारा आदेश दिया गया था लेकिन सरकार द्वारा एक एफ आई आर को रद्द करवा कर जबरन दूसरी एफआईआर दर्ज किया जाना समझ के परे है। हाल ही में अनिमेष सिंह के विरुद्ध धारा 420 के तहत एक अन्य मामला पुलिस थाना खुर्सीपार, भिलाई नगर, जिला दुर्ग में पंजीकृत किया गया है।
जबकि महाधिवक्ता द्वारा न्यायालय को बताए गए अनुसार अब तक कहीं कोई जांच के लिए एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शासन और पुलिस प्रशासन की मिलीभगत से इस मामले को भटकाने के लिए और कुछ नामदार लोगों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। अगली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के समक्ष सारी बातों का लिखित तर्क प्रस्तुत किया जाएगा। मामले में याचिकाकर्ता प्रभुनाथ मिश्रा ने बताया है कि अनिमेष सिंह को व्यक्तिगत आरोपी बनाकर सरकार पूरे मामले को षडयंत्र पूर्वक दबाने का ख्वाब देख रही है। ऐसी सभी प्रथम सूचना रिपोर्ट जो अब दर्ज की जा रही हैं उन सभी में पक्षकारों को उच्च न्यायालय में भी अपना जवाब प्रस्तुत करना पड़ सकता है। शासन न्यायालय को चाहे कितना भी गुमराह करने का प्रयास करे किन्तु अब यह मामला किसी भी सूरत में बंद नहीं हो सकता और ना ही इसे भटकाया जा सकेगा। मामले की सुनवाई नवंबर माह में किए जाने हेतु न्यायालय ने निर्देशित किया है।