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Bhilai Nagar : भिलाई नगर । शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन जब मां दुर्गा वापस जाती हैं तो उनकी विदाई के सम्मान में सिंदूर की होली खेली जाती है। यह पर्व सामाजिक एकता और आनंद की भावना को दर्शाता है और यह परंपरा दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।
Bhilai Nagar : आपको बता दें कि दुर्गा पूजा के उत्सव में सिंदूर की होली खेलने की परंपरा बंगाल में बहुत प्रचलित है। सिंदूर खेला माता की विदाई के दिन खेला जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल होती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। आज हाउसिंग बोर्ड कालीबाड़ी, टाउनशिप सेक्टर-6 कालीबाड़ी, मरोदा सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति सहित भिलाई दुर्ग के अनेक पूजा पंडालों में मां दुर्गा विसर्जन पूर्व धूमधाम से महिलाओं ने सिंदूर खेला में भागीदारी निभाई और माता को विदा किया।
नवरात्रि के दसवें दिन महाआरती के साथ सिंदूर खेला का आरम्भ हुआ। आरती के बाद भक्तगणों ने मां देवी को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि का भोग लगाया। इसके बाद मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और फिर सिंदूर खेला शुरू हुआ। इसमें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर और धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं।
Bhilai Nagar : सिन्दूर खेला के बाद ही अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही मां दुर्गा का विसर्जन भी किया जाता है। बताया जाता है कि सिंदूर खेला की यह रस्म साढ़े 4 सौ साल से अधिक पुरानी है। बंगाल से इसकी शुरुआत हुई थी और अब काशी समेत देश के अलग-अलग जगहों पर इसकी खासी रंगत देखने को मिलती है। मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और जब वह वापस जाती हैं तो उनके विदाई में उनके सम्मान में सिंदूर खेला की रस्म की जाती है।
सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति मरोदा सेक्टर में सिंदूर उत्सव में माँ दुर्गा के सँग पूजा पंडाल में मौजूद डाक्टर सोनाली चक्रवर्ती ने बताया कि बंगाल में ऐसी मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा अपनी ससुराल से 4 दिन के लिए मायके आई हैं। आज शाम विसर्जन से पूर्व महिलाएं उन्हें सिंदूर लगा कर मिठाई खिला साड़ी चढ़ा कर उन्हें ससम्मान विदा करती हैं।
इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे के सदा सुहागन होने तथा परिवार व देश में सुख समृद्धि बने रहने की कामना व प्रार्थना करती हैं। राजा हो या रंक दुर्गोत्सव के दौरान सभी लोग पूजा पंडाल में माताजी का दर्शन करते हैं और कतारबद्ध हो भोग ग्रहण करते हैं। यह पूजा एकजुटता के साथ सभी की समृद्धि और श्रद्धा का प्रतीक भी है।