CG Politics: आधा दर्जन सीटों पर मिले सिर्फ जख्म! अलग राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ हो गया भगवामय, जीत को तरसती रही है कांग्रेस


रायपुर ( न्यूज़)। कभी कांग्रेस का मजबूत किला रहा छत्तीसगढ़ अब पूरी तरह से भाजपा के कब्जे में है। अलग राज्य बनने के बाद पहले अटल और अब मोदी का मैजिक ऐसा चला कि कांग्रेस को जीत को लाले पड़ते रहे। इस बार कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है, वहीं भाजपा को एक बार फिर मोदी मैजिक का भरोसा है। छत्तीसगढ़ की कई ऐसे सीटें है, जहां अलग राज्य बनने के बाद पार्टी को अब तक एक बार भी जीत नसीब नहीं हुई है। इन सीटों पर कांग्रेस को सिर्फ जख्म मिले हैं। भाजपा ने सधी हुई रणनीति के तहत धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ को अपने कब्जे में करना शुरू किया और अब करीब-करीब पूरा राज्य उसकी आगेश में है। कांग्रेस एक बार के बाद एक चुनाव हारती रही और भाजपा का किला मजबूत होता रहा।

पृथक राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में अब तक 4 लोकसभा चुनाव हुए हैं। इन चुनावों में कांग्रेस के लिए अपनी साख बचाना मुश्किल होता रहा है। इस बार भी कांग्रेस की प्रतिष्ठा दाँव पर है, जबकि भाजपा ने सभी 11 सीटें जीतने का न केवल लक्ष्य रखा है, बल्कि जीत के दावे भी किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2004 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। उसके बाद 2009 में परिसीमन के चलते कई सीटों में हेरफेर भी हुआ, बावजूद इसके भाजपा लगातार मजबूत बनी रही। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीट में से छह भाजपा का गढ़ कही जाती हैं। साल 2000 में राज्य गठन के बाद से भाजपा एक बार भी इन सीट पर नहीं हारी है। आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भरोसा है वह इस बार भाजपा के किलों को भेदने में कामयाब होगी, जबकि भाजपा आश्वस्त कि वह अपनी जीत बरकरार रखेगी और राज्य की अन्य लोकसभा सीट पर भी कब्जा जमाएगी।

इन छह लोकसभा सीटों में अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कांकेर, सरगुजा और रायगढ़ हैं। वहीं, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जांजगीर-चांपा और सामान्य वर्ग की रायपुर और बिलासपुर सीट शामिल हैं। राजनांदगांव लोकसभा सीट पर भाजपा 2000 से लगातार जीत रही है, लेकिन 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस विजयी हुई थी। इस बार कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को यहां से मैदान में उतारा है। वहीं दुर्ग सीट पर भी भाजपा का परचम लगातार लहराता रहा है। यहां 2014 के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक बार जीत मिली। इस बार इस सीट पर भी रोमांचक मुकाबला है। मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ के विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में भाजपा का अच्छा प्रदर्शन रहा है। भाजपा ने 2003 से 2018 तक 15 वर्षों तक राज्य में लगातार सत्ता संभाली और 2023 के विधानसभा चुनावों में जीत के बाद चौथी बार सत्ता में आई। भाजपा ने 2004, 2009 और 2014 में 10 लोकसभा सीट जीती थीं। साल 2018 के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा नौ सीट जीतने में कामयाब रही।

भाजपा के 6 किलों पर कांग्रेस की नजर
दोनों पार्टियों ने राज्य में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 7 मई को तीन चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। कांग्रेस ने भाजपा के छह गढ़ों को भेदने के लिए एक मौजूदा विधायक, दो पूर्व विधायकों जिनमें एक मंत्री भी रहे, दो नये चेहरों और एक अनुभवी नेता पर दांव लगाया है। रायपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने निवर्तमान सांसद सुनील सोनी को हटाकर आठ बार के विधायक और विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली वर्तमान राज्य सरकार में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को मैदान में उतारा है। साल 2019 के लोकसभा चुनावों में सोनी ने कांग्रेस के प्रमोद दुबे को 3,48,238 मतों के अंतर से हराया था। महाराष्ट्र के मौजूदा राज्यपाल रमेश बैस ने भाजपा के टिकट पर सात बार (1989, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में) जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने इस बार रायपुर सीट से पूर्व विधायक विकास उपाध्याय को मैदान में उतारा है। कांकेर लोकसभा सीट पर भी भाजपा ने निवर्तमान सांसद मोहन मंडावी को टिकट नहीं दिया है और पूर्व विधायक भोजराज नाग को मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस ने बीरेश ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है। ठाकुर पूर्व में पंचायत निकायों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। ठाकुर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांकेर 6,914 मतों के अंतर से मंडावी से हार गए थे। भाजपा ने जांजगीर-चांपा सीट से निर्वतमान सांसद गुहाराम अजगले को भी टिकट नहीं दिया है और नये चेहरे के तौर पर महिला नेता कमलेश जांगड़े को मैदान में उतारा है। कांग्रेस की ओर से प्रदेश के पूर्व मंत्री शिव कुमार डहरिया चुनाव लड़ेंगे। वहीं, सरगुजा में भाजपा ने हर चुनाव में अपना उम्मीदवार बदला और सीट जीतने में कामयाबी हासिल की है। इस बार इस सीट से पूर्व विधायक चिंतामणि महाराज को टिकट मिला है। कांग्रेस ने अपनी युवा नेता एवं राज्य के पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की बेटी शशि सिंह को मैदान में उतारा है। रायगढ़ सीट से भाजपा ने नये चेहरे राधेश्याम राठिया को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने मेनका देवी सिंह पर भरोसा दिखाया है। सिंह राज्य में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पूर्व सारंगढ़ शाही परिवार से हैं। बिलासपुर सीट की बात करें तो भाजपा के पूर्व विधायक तोखन साहू और कांग्रेस के निवर्तमान विधायक देवेन्द्र यादव के बीच मुकाबला होना है।

इन सीटों पर मिल रही कड़ी चुनौती
सरगुजा, कोरबा और रायगढ़ की सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के लिए इस बार बड़ी चुनौतियां दिख रही हैं। सरगुजा सीट पर राज्य बनने के बाद 2003 से भाजपा के प्रत्याशियों को बड़ी जीत मिलती आ रही है। हर बार वोट प्रतिशत भी बढ़ रहा है किंतु इस बार यहां से भाजपा ने जिसे प्रत्याशी बनाया है, वे कुछ माह पहले कांग्रेस के विधायक थे। ऐसे में पार्टी के ही भीतर उन्हें लेकर सामंजस्य का अभाव देखने को मिल रहा है। हालांकि पार्टी के नेता इस सीट को आसानी से जीत लेने का दावा कर रहे हैं। अंचल के कोरबा संसदीय सीट पर कांग्रेस के लिए सीट बचाने की चुनौती है। रायगढ़ सीट भाजपा की पारंपरिक सीट है। यहां हमेशा भाजपा को जीत मिलती आई है। इस बार यहां से भाजपा ने युवा व नए चेहरे पर दांव खेला है। उनके सामने राजघराने की 70 वर्षीया महिला डाक्टर मैदान में हैं। भाजपा के लिए यहां भी अपनी सीट बरकरार रखने की चुनौती है। भाजपा के लोग केंद्रीय योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने और छत्तीसगढ़ सरकार की महतारी वंदन योजना को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इसी के नाम पर वोट भी मांगा जा रहा है। वहीं, कांग्रेस के पदाधिकारी और कार्यकर्ता महालक्ष्मी न्याय योजना को लेकर घर-घर दस्तक दे रहे हैं।

बिलासपुर अभेद्य तो जांजगीर में परीक्षा
बिलासपुर की सीट उन चुनिंदा सीटों में है, जहां भाजपा लगातार चुनाव जीतती रही है। इस सीट पर भाजपा का 27 सालों से कब्जा है। वहीं जांजगीर की सीट पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी हुई है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले बिलासपुर लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए और जांजगीर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित की गई थी। परिसीमन के बाद आरक्षण की स्थिति दोनों ही सीटों पर बदली। या यूं कहें कि आरक्षण के मसले पर अदला-बदली हो गई। बिलासपुर सामान्य वर्ग के लिए और जांजगीर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। तब से लेकर अब तक हुए चार चुनाव में दोनों ही सीटों पर भाजपा चुनाव जीतते आ रही है। इस बार बिलासपुर सीट पर कांग्रेस ने भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को उम्मीदवार बनाया है। वहीं भाजपा से तोखन साहू उम्मीदवार हैं। इधर, जांजगीर सीट भाजपा के लिए कड़ी परीक्षा लेने जा रही है। 4 जिलों में बँटे इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती है। हालिया सम्पन्न विधानसभा चुनाव में इनमें से एक भी सीट पर भाजपा को जीत नसीब नहीं हुई थी। वहीं पार्टी की एक चुनौती बसपा द्वारा अपना प्रत्याशी उतार देना भी है। इसमें संदेह नहीं है कि क्षेत्र में बसपा का काफी जनाधार है, ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि बहुजन समाज की बात करने वाली यह पार्टी किसके वोट काटती है।