CG Politics: तिकड़ी के बाद विराम या जीत का चौका! भाजपा ने लगातार तीन बार हासिल की है महासमुंद से जीत, इस बार ताम्रध्वज ने दिलचस्प बनाया मुकाबला


रायपुर ( न्यूज़)। लगातार तीन चुनावों से जीत हासिल कर रही भारतीय जनता पार्टी इस बार महासमुंद क्षेत्र से जीत का चौका जडऩे को बेताब तो है, लेकिन उसे कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू के रूप में मजबूत चुनौती भी मिल रही है। इस क्षेत्र को ओबीसी बाहुल्य माना जाता है। इसी जातीय समीकरण को देखते हुए दोनों दलों ने यहां से ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं। भाजपा से रूपकुमारी चौहान जीत का चौका लगाने मैदान में हैं तो राज्य में गृहमंत्री रह चुके ताम्रध्वज साहू ने इस चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।

महासमुंद को कांग्रेस का मजबूत किला माना जाता रहा है, लेकिन पिछले लगातार तीन चुनावों से यहां भाजपाई परचम लहरा रहा है। भाजपा इस बार भी महासमुंद फतह की उम्मीद में है, जबकि कांग्रेस भी यहां से बेहतर प्रदर्शन की आस लगाए बैठी है। चुनाव प्रचार अभियान लगातार ते•ा हो रहा है तो विकास और मुद्दों को दरकिनार कर चेहरों और योजनाओं पर दांव खेला जा रहा है। भाजपा के लिए मोदी का चेहरा और मोदी का गारंटियां ही प्रमुख है, जबकि कांग्रेस भी महालक्ष्मी न्याय जैसी योजनाओं के भरोसे है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पूरे प्रदेश की ही तरह यहां भी महतारी योजना का जलवा कायम है। इसका लोकसभा चुनाव में भाजपा को कितना फायदा होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। अब तक के चुनावों की चर्चा करें तो यहां प्रमुख रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होता रहा है। इस बार भी यही हालात है। विगत चुनाव में भाजपा के चुन्नीलाल साहू ने कांग्रेस के धनेन्द्र साहू को पटखनी दी थी।

लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस व भाजपा में जहां बैठकों का लगातार दौर चल रहा है, वहीं हर दिन कांग्रेसी खेमे से लोग दलबदल कर भाजपा प्रवेश कर रहे हैं। देखा जाए तो महासमुंद सीट शुरू से हाईप्रोफाइल रही है। पहले यह क्षेत्र शुक्ल बंधुओं का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता था, पर अब परिस्थितियां बदली है। वर्ष 2004 के चुनाव में यहां से दिवंगत वीसी शुक्ल आखिरी बार चुनाव लड़े थे। पराजय के बाद शुक्ल परिवार की राजनीति भी दफ्न हो गई। शुक्ल बंधुओं की पारी समाप्त होने के बाद भी यह सीट हाईप्रोफाइल बनी हुई है, क्योंकि 2004 में प्रथम मुख्यमंत्री स्व अजीत जोगी मैदान में उतरे थे। दूसरी बार वे 2014 में यहां से चुनाव लड़े, तो भाजपा के चन्दूलाल साहू से पराजित हो गए। इस बार यह सीट फिर से चर्चा में है। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी राज्य के पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू मैदान में हैं। वहीं, भाजपा से राज्य की पूर्व संसदीय सचिव, बसना की पूर्व विधायक रूपकुमारी चौधरी मोर्चे पर डटी हुई हैं। यहां दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होगा। इस बीच, दल-बदल का सिलसिला भी शुरू हो गया है। भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वालों की संख्या गिनी चुनी है। जबकि कांग्रेस से जिला व जनपद पंचायत के अध्यक्ष उषा पटेल, अनिता रावटे, अरुणा शुक्ला, अनामिका पाल, देवेश निषाद, नानू भाई, बादल मक्कड़ जैसे जन्मजात कांग्रेसियों ने दलबदल कर भाजपा का दामन थामा है।

ऐसा रहा है चुनावी नजारा
2009 से लेकर अब तक के कुल तीन चुनावों में भाजपा ने महासमुंद से लगातार जीत हासिल की है। 2009 में भाजपा के चंदूलाल साहू ने कांग्रेस के मोतीलाल साहू को पराजित कर परचम लहराया था। इसके बाद 2014 के चुनाव में भाजपा के चंदूलाल साहू ने कांग्रेस के अजीत जोगी को हराकर दूसरी बार जीत हासिल की। इस चुनाव को 11 चंदूलाल साहू प्रत्याशियों के लिए भी जाना जाता है। हालांकि जीत भाजपा के ही हिस्से में आई। 2019 में भी भाजपा ने चुन्नीलाल साहू को लगातार तीसरी बार प्रत्याशी बनाया तो कांग्रेस से धनेन्द्र साहू मैदान में थे। इस बार भी चुन्नीलाल ने भाजपा को निराश नहीं किया। लगातार तीन जीत हासिल करने के बाद भी भाजपा ने इस बार अपना प्रत्याशी बदलकर रुपकुमारी चौहान को प्रत्याशी बनाया है। क्षेत्र के मतदाताओं के लिए इस बार दोनों दलों से नए प्रत्याशी मैदान में हैं और दोनों ही प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से भी हैं।

7 बार जीते विद्याचरण
छत्तीसगढ़ की राजनीति का केन्द्र कहे जाने के पीछे महासमुंद सीट का अपना इतिहास है। कांग्रेस के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ला इसी सीट से सात बार सांसद निर्वाचित हुए। इसी सीट से श्यामाचरण शुक्ल और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। वह भी इस सीट से जीत हासिल कर चुके हैं। अब तक यहां कांग्रेस का दबदबा बरकरार रहा है, लेकिन 1998 लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने कांग्रेस को शिकस्त दे दी। इसके बाद यहां के सांसद बने चंदूलाल साहू। कांग्रेस की करारी हार के बाद भाजपा का मनोबल बढ़ गया और दोनों प्रमुख राजनीतिक दल के बीच कांटे की टक्कर होने लगी। हालांकि 1999 और 2004 में यहां कांग्रेस फिर से जीत गई, लेकिन उसके बाद लगातार इस सीट पर भाजपा का परचम लहरा रहा है। आजादी के बाद से अब तक महासमुंद लोकसभा सीट में 18 बार चुनाव हो चुके हैं। इसमें से 12 बार चुनाव कांग्रेस ने जीता है। पांच बार बीजेपी का दबदबा इस लोकसभा सीट पर बना रहा है।

जातिगत समीकरण बनते हैं जीत की वजह?
महासमुंद लोकसभा सीट के लिए जातिगत समीकरण भी मायने रखता है। इस सीट पर ओबीसी वर्ग का खासा दबदबा माना जाता है। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने यहां से ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कांग्रेस से पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू तो बीजेपी से रूप कुमारी चौधरी दोनों ही ओबीसी वर्ग से आते हैं। वहीं कांग्रेस का यह भी मानना है कि बड़े कांग्रेसी नेताओं को एक खास रणनीति के तहत टिकट दिया गया है। जिसका प्रभाव भी चुनाव में देखने को मिलेगा। ताम्रध्वज साहू के राजनीतिक सफर की बात करें तो चार बार विधानसभा चुनाव और एक बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। वही रूपकुमारी चौधरी 2013 से 2018 तक बसना के विधायक रह चुकीं हैं। महासमुंद लोकसभा सीट आठ विधानसभा क्षेत्रों को मिलकर बनी है। यहां स्थानीयता और जातिवाद का मुद्दा हमेशा ही बना रहता है और चुनाव के वक्त हावी भी हो जाता है।

महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा
इस बार लोकसभा क्षेत्र से कुल मतदाता 17,59,181 हैं। इनमें 8,65,125 पुरुष हैं, जबकि 8,94,023 महिला मतदाता हैं। वहीं, 33 थर्ड जेंडर मतदाता हैं।इनमें पुरुषों की तुलना में महिला वोटर 28,898 अधिक हैं। अब तक देखा जाता रहा है कि मतदान करने में शहरी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं अधिक उत्साहित रहीं हैं। लंबी कतार में घंटों लगकर वोट डालने की प्रतिबद्धता व जीवटता महिलाओं में देखी गई है। जबकि पोलिंग बूथ पर महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की कतार कम ही रही है। राजनीतिक-सामाजिक आंकड़ों के जानकारों की माने तो महासमुंद लोकसभा में लगभग 54 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं, जो निर्णायक हैं। इनमें साहू समाज के अलावा, यादव, अघरिया, कोलता, निषाद, मरार पटेल, धोबी, नाई, देवांगन, कुर्मी, पनिका, ओबीसी सिख, मुस्लिम, इसाई आदि हैं। वहीं 15 प्रतिशत अनारक्षित सामान्य वर्ग हैं, जिनमें ब्राह्मण, क्षेत्रीय, वैश्य, जैन, माहेश्वरी, अनारक्षित वर्ग के सिख, इसाई, मुस्लिम हैं। वहीं 31 प्रतिशत में एसटी व एससी मतदाता हैं।