CG Politics: 4 सीटों पर खेल बिगाड़ते हैं दीगर दल! जांजगीर में बसपा तो बस्तर-कांकेर में सीपीआई से गड़बड़ाता रहा है नतीजों का गणित


रायपुर ( न्यूज़)। लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है। आमजन में इस बात की चर्चा शुरू हो चुकी है उनकी लोकसभा सीट से सांसद कौन होगा? किस पार्टी का कौन प्रत्याशी किसका वोट काटेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ की 4 लोकसभा सीट ऐसी है, जहां से बसपा, गोंगपा और सीपीआई के प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस की जीत हार को तय करते आए हैं। मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य के बनने के बाद लोकसभा के चार चुनाव हुए है जिसमे बीजेपी ने अधिकतम 10 सीट जीती है तो कांग्रेस ने अधिकतम 2 सीट पर जीत दर्ज की है। हालांकि छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता आया है। उसके बावजूद प्रदेश की चार लोकसभा सीट में बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोगपा) और सीपीआई, बीजेपी और कांग्रेस के जीत हार में अपनी बड़ी भूमिका दर्ज कराती रही है। जांजगीर लोकसभा सीट पर राज्य बनने के बाद अब तक 4 चुनाव हुए हैं। अगर बीते तीन चुनाव का ट्रेंड देखें तो बसपा को जितने वोट मिले अगर वो वोट कांग्रेस को मिल जाते तो कांग्रेस इस सीट से जीत जाती।

छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजां कभी भी तीसरे दल के अनुकूल नहीं रही है। इसका प्रमाण यह है कि यहां अपवादों को छोड़ दें तो कभी भी भाजपा व कांग्रेस के अलावा तीसरे दल का सांसद निर्वाचित नहीं हुआ। कई क्षेत्रीय या स्थानीय दलों ने हालांकि अपने स्तर पर काफी प्रयास किए, लेकिन सफलता नगण्य रही। शायद यही वजह है कि कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों दलों का मानना रहा है कि राज्य में तीसरे मोर्चा की मौजूदगी से कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल, राज्य में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीधा मुकाबला होता आया है। लेकिन यह भी हकीकत है कि कोरबा, जांजगीर, बस्तर और कांकेर जैसी सीटों पर तीसरे दल की मौजूदगी का असर साफ तौर पर देखा जाता रहा है। इन सीटों पर बसपा, सीपीआई और गोंगपा जैसे दल भाजपा व कांग्रेस का गणित बिगाड़ते रहे हैं। इस बार भी इसकी गुंजाइश बनी हुई है।

जांजगीर में बसपा का जनाधार
2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कमला देवी पाटले को 40.96 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस के शिवकुमार डहरिया को 29 प्रतिशत वोट मिले। इसके अलावा बसपा के दाऊराम रत्नाकर को 23.86 प्रतिशत मत मिले थे। अगर कांग्रेस और बसपा के वोट जोड़ दिए जाएं, तो ये करीब 53 प्रतिशत हो जाता है। ऐसा होने पर कांग्रेस जीत जाती। लेकिन, बसपा के खेल बिगाडऩे की वजह से कांग्रेस पार्टी इस सीट से हार गई। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा की कमला देवी फिर मैदान में थी। उन्हें 41.59 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस के प्रेमचंद जायसी 27.57 प्रतिशत वोट हासिल कर हार गए। वहीं, बसपा से फिर दाऊराम रत्नाकर को 10.07 प्रतिशत वोट मिले। हालांकि, इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच के जीत का अंतर इतना ज्यादा था कि अगर बसपा कांग्रेस के साथ भी आ जाती तब भी भाजपा को हरा नहीं पाती। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गुहाराम अजगले को मैदान में उतरा था। तब मोदी लहर उन्हें 45.91 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस के रवि भारद्वाज को 39.24 प्रतिशत मत मिले। वहीं, बसपा से एक बार फिर दाऊराम रत्नाकर मैदान में थे। इस बार भी उन्हें 10.7 प्रतिशत वोट मिले। 2019 में बसपा ने ही यहां कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया था। अगर बसपा के वोट कांग्रेस को मिल जाते तो यहां से कांग्रेस प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित थी।

बस्तर में सीपीआई का जलवा
बस्तर में कांग्रेस और भाजपा के साथ ही सीपीआई का प्रत्याशी मैदान में रहा है। 2009 में चुनाव जीतने वाले भाजपा के बलिराम कश्यप को 44.16 प्रतिशत तो कांग्रेस प्रत्याशी को 26.46 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, कम्युनिस्ट पार्टी को 13.89 फीसदी वोट मिले थे। यहां अगर सीपीआई नहीं होती तो इस चुनाव में कांग्रेस की जीत पक्की हो जाती। 2014 में बीजेपी के दिनेश कश्यप को 42.27 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के दीपक कर्मा को 28.64 फीसदी मत मिले। वहीं, सीपीआई के बिमला सोरी को 3.71 प्रतिशत मत मिले थे। हालांकि इस बार कांग्रेस और भाजपा की जीत में अंतर इतना ज्यादा था कि अगर सीपीआई के वोट भी कांग्रेस को मिल जाते तो भी कांग्रेस के प्रत्याशी जीत नहीं पाते। इसी तरह 2019 में कांग्रेस के दीपक बैज को 44.1 प्रतिशत मत मिले, जबकि बीजेपी के बेदुराम कश्यप को 39.83 प्रतिशत मत हासिल हुए। सीपीआई के रामुराम मौर्य को 4.21 प्रतिशत मत मिले। इस प्रकार इन तीनों चुनाव में देखे तो सीपीआई ने एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस का खेल बिगाड़ा।

कांकेर में कांग्रेस को कई बार मिली हार
कांकेर लोकसभा सीट पर बीते 2009, 2014 और 2019 चुनाव में बसपा सीपीआई और निर्दलीय ने जीत हार के समीकरण को बिगाडऩे का काम किया है। 2009 में बीजेपी के सोहन पोटाइ 45.99 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि कांग्रेस की फूलोदेवी नेताम को 43.39 प्रतिशत मत मिले थे। वहीं, निर्दलीय मायाराम नेताम को 2.82 प्रतिशत मत मिले। इस प्रकार निर्दलीय के मैदान में होने से कांग्रेस ये चुनाव हार गई। 2014 में बीजेपी के विक्रम उसेंडी को 40.13 प्रतिशत मत मिले और कांग्रेस की फूलो देवी नेताम को 37.1 प्रतिशत मत मिले। वहीं सीपीआई ने 2.03 प्रतिशत मत हासिल किए। 2019 के चुनाव में बीजेपी के मोहन मंडावी को 47.12 प्रतिशत वोट मिले और कांग्रेस के बिरेश ठाकुर को 46.53 प्रतिशत वोट मिले। इसके अलावा बसपा के प्रत्याशी को एक प्रतिशत से कम वोट मिले। अगर ये वोट कांग्रेस को मिल जाते, तो कांग्रेस के बिरेश ठाकुर जीत जाते।

कोरबा का समीकरण गोंगपा पर निर्भर
कोरबा लोकसभा सीट से वर्तमान में कांग्रेस की ज्योत्सना महंत सांसद हैं। कोरबा का समीकरण गोंगपा के वोटों पर निर्भर होता है। 2009 में कांग्रेस के चरणदास महंत को 42.20 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि बीजेपी की करुणा शुक्ला को 39.41 वोट मिले और गोंगपा के हीरा सिंह मरकाम को 4.42 प्रतिशत वोट मिले। गोंगपा के वोट अगर बीजेपी को मिलते, तो भाजपा ये सीट भी जीत लेती। वहीं, 2014 के चुनाव में बीजेपी के बंशीलाल महतो को 38.61 प्रतिशत मत मिले और कांग्रेस के चरणदास महंत को 38.24 प्रतिशत मत मिले। इसके अलावा, गोंगपा के हीरा सिंह मरकाम को 4.64 प्रतिशत मत मिले। इस बार गोंगपा के मतों से बीजेपी को फायदा हुआ और कांग्रेस हार गई। 2019 में कांग्रेस की ज्योत्सना महंत को 46.03 प्रतिशत मत मिले, जबकि बीजेपी के ज्योतिनंद दुबे को 43.72 प्रतिशत मिले। वहीं, गोंगपा ने 3.29 प्रतिशत मत हासिल किए। गोंगपा का मत बीजेपी में जाता तो बीजेपी इस सीट को जीत सकती थी।