CG Politics: साहू-कुर्मी से पार पाना बड़ी चुनौती! बिलासपुर की सामान्य सीट पर दोनों दलों ने उतारे ओबीसी प्रत्याशी


सामाजिक मतदाताओं की एकजुटता से तय होगा भाजपा जीतेगी या कांग्रेस
रायपुर ( न्यूज़)। छत्तीसगढ़ की बिलासपुर लोकसभा सीट पर भाजपा को चुनौती देना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती रहा है। इस सीट पर 1996 के बाद से भाजपा को हराया नहीं जा सका है। हालांकि इस बार कांग्रेस ने जातीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखते हुए भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को प्रत्याशी बनाकर चुनौती देने की कोशिश की है। यहां यादव मतदाताओं की तुलना में साहू व कुर्मी मतदाताओं का आंकड़ा निर्णायक भूमिका निभा सकता है। भले ही बिलासपुर में यादव मतदाताओं की संख्या अधिक हो, लेकिन भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू को पार्टी के परंपरागत वोटों के साथ ही साहू समाज का समर्थन मिलना तय माना जा रहा है। कुर्मियों के वोट जरूर बँटने की चर्चा है, लेकिन डबल इंजन की सरकार का फायदा भी भाजपा प्रत्याशी को मिलेगा, इसमें कोई दोराय नहीं है। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने जिस तरह से आम आदमी की नब्•ा पकड़ी है, उसके भी अपने राजनीतिक मायने है।

ओबीसी बाहुल्य बिलासपुर क्षेत्र में साहू और कुर्मी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। हालांकि यहां यादव भी प्रभावी भूमिका में हैं। आंकड़ों की बात करें तो साहू-कुर्मी वोटर्स की संख्या यहां करीब 2 लाख है, जो कुल मतदाताओं का करीब-करीब 10 फीसद होता है। इसके बाद यादव समाज की बारी आती है। यादव मतदाताओं की संख्या करीब 1.6 लाख है और ये कुल मतदाताओं को 8.4 फीसद के आसपास पहुंचते हैं। मुस्लिम समाज की आबादी 65 हजार के करीब है और ये 3.4 फीसद होते हैं। उसके बाद पटेल 3.3 फीसद और राजपूत 2.5 फीसद हैं। बाकी के समाजों का आंकड़ा इससे नीचे का है। भाजपा ने साहू समाज को साधने के लिए तोखन साहू को मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस ने देवेन्द्र यादव को उम्मीदवार बनाकर यादव समाज के वोट कबाडऩे की रणनीति बनाई है। बिलासपुर में कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती यह भी है कि यहां से 2019 में भाजपा के अरुण साव ने चुनाव जीता था, जो वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं। अरुण साव भी साहू समाज से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में भाजपा की जीत श्री साव के लिए भी महत्वपूर्ण है।

रूठों को मनाने की कवायद
कांग्रेस द्वारा देवेन्द्र यादव को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पार्टी के कई बड़े नेता नाराज हो गए। अभी कांग्रेस प्रत्याशी इन नाराज नेताओं को मनाने में जुटे हैं। कांग्रेस में भीतरघात और खुलाघात का लम्बा इतिहास रहा है, ऐसे में देवेन्द्र यादव के लिए चुनौतियां कम नहीं है। शायद इस स्थिति को भाँपकर ही श्री यादव पार्टी के पुराने और घर बैठे नेताओं तक पहुंच रहे हैं। दुर्ग जिले की भिलाई नगर सीट से लगातार दो बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले देवेन्द्र यादव को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी माना जाता है, इसका फायदा उन्हें जरूर मिल सकता है, लेकिन यह देखना भी अहम् है कि स्वयं भूपेश बघेल के खिलाफ राजनांदगांव में नाराजगी के स्वर उभरे थे। हालांकि कार्यकर्ताओं तक यह बात पहुंचा दी गई है कि प्रत्याशी के चेहरे की बजाए पार्टी के चुनाव चिन्ह पर फोकस करना है। देवेन्द्र यादव भी बिलासपुर में यही समझाने में जुटे हैं। वोटिंग के लिए अभी लम्बा समय है, इसलिए सब कुछ सुनियोजित चल रहा है।

जमीनी कार्यकर्ता रहे हैं तोखन
भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता हैं। 2013 में पार्टी ने उन्हें लोरमी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया था, जहां उन्होंने कांग्रेस के धर्मजीत सिंह को पराजित किया। उन्हें कृषि, मछलीपालन व जलसंसाधन विभाग का संसदीय सचिव बनाया गया। 2014 में तोखन छत्तीसगढ़ वन्य जीव बोर्ड के सदस्य बनाए गए। 2015 में खैरागढ़ संगीत विवि के सदस्य बने। 2018 में पार्टी ने उन्हें दोबारा लोरमी क्षेत्र से उतारा, लेकिन इस बार वे धर्मजीत सिंह से चुनाव हार गए। तोखन साहू प्रदेश पिछड़ा वर्ग मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रहे। बाद में प्रदेश किसान मोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बने। 2023 विधानसभा चुनाव में नवागढ़ के प्रभारी बनाए गए। उनका संघ से जुड़ाव रहा है। वर्तमान में वे प्रदेश भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष हैं। उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1994 में पंच निर्वाचित होने के साथ हुई थी। बाद में जनपद सदस्य और फिर जनपद पंचायत लोरमी के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए।

मोदी का नाम और साय का काम
भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू अपनी जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हंै। उनका कहना है कि 10 वर्षों के पीएम मोदी के शासनकाल में जो क्रांतिकारी बदलाव देश में हुए हैं, उसका लाभ उन्हें भी मिलेगा। भाजपा प्रत्याशी के मुताबिक, छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने बेहद कम समय में मोदी की गारंटियों को पूरा करने का काम किया है, भला मतदाताओं के जेहन से उसे हटाया जा सकेगा? उन्होंने कहा कि राज्य की साय सरकार के सौ दिन पूरे हुए हैं। सौ दिन में साय सरकार ने तो चमत्कार ही कर दिया है। मोदी की गारंटी को लगातार पूरा करने का काम किया जा रहा है। साय सरकार के कामों का भी चुनाव में बड़ा फायदा मिलेगा। तोखन साहू के मुताबिक, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दस साल के कामों का ऐसा आकर्षण है कि इस बार बिलासपुर लोकसभा से भाजपा को रिकॉर्ड मतों से जीत मिलेगी। हमारे प्रदेश की विष्णुदेव साय सरकार ने मोदी की गारंटी को लगातार पूरा करने का जो काम किया है, वह भी अविस्मरणीय है।

भागवत अचानक पहुंचे, क्या मंत्र फूंक गए?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का अचानक हुआ बिलासपुर प्रवास बेहद अहम् माना जा रहा है। भागवत के यहां आने की किसी को खबर नहीं थी। वे यहां आए और संघ कार्यालय में कुछ वक्त बिताया। इस दौरान बंद कमरे में संगठन पदाधिकारियों से चर्चा की। इस चर्चा को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया है। हालांकि संघ प्रमुख के आने की खबर मिलने के बाद विधायक अमर अग्रवाल व सुशांत शुक्ला उनसे मिलने पहुंचे और अगुवानी व स्वागत किया। भागवत के अचानक हुए इस दौरे को लोकसभा चुनाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भागवत के गोपनीय दौरे के बाद प्रदेश की केसरिया राजनीति में हलचल है। इधर, संघ के सूत्रों का कहना था कि भागवत स्थानीय संघ कार्यालय के नवीनीकरण कार्य को देख्रने के लिए आए थे। बहरहाल, संघ प्रमुख के महज आधे घंटे के दौरे के बाद यह सवाल अपनी जगह कायम है कि भागवत स्वयंसेवकों और पदाधिकारियों के कानों में क्या मंत्र फूंक गए?