LS Election: ईवीएम में कैद हुआ दावों-वायदों का भरोसा, अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं प्रत्याशी, अब 4 जून का इंतजार


रायपुर ( न्यूज़)। महीनों की जद्दोजहद, आरोप-प्रत्यारोप, घोषणाएं, दावे और वायदों का भरोसा ईवीएम में कैद हो गया। छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में करीब 70 फीसद वोटिंग हुई। जिस राज्य को नक्सल प्रभावित मानकर 3 चरणों में मतदान कराया गया, वहां चुनावी यज्ञ निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। अब इंतजार 4 जून का है, जब मतदाताओं का फैसला ईवीएम से बाहर निकलेगा। इससे पहले तो प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं। चुनाव के नतीजे ही यह बताएंगे कि मतदाताओं ने मुद्दों और चेहरे पर भरोसा जताया या आश्वासनों और गारंटियों पर।

छत्तीसगढ़ में आम जनता का भरोसा लोकतंत्र के प्रति मजबूत हुआ है। तीन चरणों में पूरे हुए चुनाव में लगभग 70 फीसदी मतदान हुआ। नक्सलियों के आदेश को भी इस बार जनता ने नहीं माना। हालांकि इस बात का डर चुनाव एजेंसियों सहित प्रशासन को भी था कि नक्सली चुनाव को प्रभावित करेंगे। यही वजह रही कि महज 11 सीटों के लिए छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में चुनाव करवाए गए। पहले चरण में सिर्फ एक लोकसभा सीट बस्तर में ही चुनाव हुआ। सघन नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में बिना कोई हिंसा के चुनाव संपन्न हो गया। दूसरे चरण में तीन लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ। हालांकि इसमें आईईडी विस्फोट होने से एक सिपाही की जान चली गई और एक घायल हुआ। बावजूद इसके आम जनता का विश्वास नहीं डिगा और तीसरे चरण के मतदान में भी लोगों ने बढ़-चढ़कर के हिस्सा लिया। 7 मई को तीसरे चरण के लिए हुए सात सीटों पर मतदान में किसी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई, जो छत्तीसगढ़ के लोकतंत्र के जीत की सबसे बड़ी कहानी कहता है। लोकतंत्र में आम जनता का विश्वास यह बताता है कि जिन्हें भी उन्होंने चुना है वह उनके लिए विकास की नीतियां बनाएंगे और यही से भारतीय संविधान से बने लोकतंत्र के नींव को मजबूत दिशा भी मिलती है।

शांतिपूर्ण मतदान की थी पूरी तैयारी
चुनाव के तीनों चरणों की बात करें तो पहले चरण में एक सीट के लिए कुल 68.30 फीसदी मतदान हुआ जो 2019 की तुलना में 2.25 फीसदी ज्यादा था। दूसरे चरण में 3 लोकसभा सीटों पर हुए मतदान के लिए कुल 72.13 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, जो 2019 की तुलना में 1.3 फीसदी ज्यादा है। तीसरे चरण में भी लोगों का उत्साह जमकर दिखा। इस चरण में करीब 70 फीसद वोटिंग हुई। लोकसभा चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से निपटने के लिए सभी एजेंसियां पूरे तरह से तैयार थी। सुरक्षा बलों की तैनाती से लेकर के दूरस्थ क्षेत्र में मतदान शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए हेलीकॉप्टर ड्रॉपिंग की भी व्यवस्था की गई। माना यह भी जा रहा था कि ऐसे दुर्गम स्थलों पर शायद कोई परेशानी खड़ी हो लेकिन इस बार जो तैयारी निर्वाचन आयोग ने कर रखी थी, वह आम जनता की भरोसे पर खरी उतरी। यही वजह है कि आम जनता ने बढ़-चढ़कर के लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लिया और मतदान किया।

किसकी गारंटी पर जताया भरोसा?
लोकसभा चुनाव के लिए जब मुद्दों का चयन शुरू हुआ तो गारंटी देने की बात को भाजपा ने सबसे ऊपर रखा। वायदों वाली राजनीति में दावों के कौन-कौन से तीर तरकश से निकल गए और उस पर जनता ने कितना भरोसा किया है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन जनता ने छत्तीसगढ़ के लिए 2 साल में नक्सलवाद को खत्म करने के लिए दी गई गारंटी पर जरूर भरोसा किया। इसकी वजह भी बड़ी साफ है। लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरीके से छत्तीसगढ़ में नक्सल आपरेशन हुए और जितने नक्सलियों का सफाया किया गया वह आम जनता के मन में एक भरोसा जरूर कायम कर गया। पहले चरण के चुनाव के पहले दो दर्जन से ज्यादा नक्सलियों को सुरक्षा एजेंसियों ने मार गिराया। लोकसभा चुनाव के बीच 50 से ज्यादा खूंखार नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन लगातार जारी है, जिसकी गारंटी हर मंच से नेता दे गए। शायद इस बात का भरोसा भी आम जनता ने किया है। यह भी एक बड़ी वजह रही है कि वैसे क्षेत्र में जहां नक्सलियों की तूती बोलती थी वहां के लोगों ने भी लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा लिया है।

भ्रष्टाचार की कहानियों का दिखा असर
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने आक्रामक तरीके से चुनावी रैलियां की। सभाओं के जरिए भ्रष्टाचार के मुद्दे हावी रहे और उन पर जमकर प्रहार भी किया गया। कांग्रेस की सरकार में आबकारी घोटाले की फाइल चुनाव के बीच जांच की जड़ में रही। इसमें कार्रवाई भी खूब होती गई। पहले चरण की समाप्ति और दूसरे चरण के बीच में ही शराब घोटाले में फंसे लोगों के यहां से ईडी ने 2250 करोड़ की संपत्ति को जब्त किया। कांग्रेस इस बात को बताने में बैक फुट पर रही, क्योंकि जो लोग पकड़े गए, वह लोग कहीं ना कहीं पूर्व की सरकार की नीतियों के हिस्सेदार थे। भाजपा ने हर मंच से अपने चुनावी तरकश की तकरीर बना ली। चुनाव की तस्वीर को साफ करने की पुरजोर कोशिश भी की गई। यह मुद्दा भाजपा को कितना फायदा और कितनी सीटें दिलाएगा, यह फिलहाल नहीं कहा जा सकता। इतना तय है कि कांग्रेस के लिए इससे निपटना इस चुनाव में मुश्किलों भरा रहा।

हमलावर नजर आई भाजपा
चुनाव में ज्यादा आक्रामक भाजपा ही दिखाई दी। भाजपा ने जिस तरीके से चुनाव प्रचार किया उसके बाद कांग्रेस सिर्फ उसकी सफाई की भरपाई ही करती रह गई। अबकी बार 400 पार, तीसरी बार मोदी सरकार के नारे से पूरे देश में चुनावी सफर को शुरू करने वाली भाजपा छत्तीसगढ़ आते-आते मंदिर, महतारी वंदन और मंगलसूत्र तक पहुंच गई। मोदी के इन नारों मे सीधा हमला कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व पर हुआ। वहीं, जाति की राजनीति को जिस तरीके से छत्तीसगढ़ में उठाया गया उसमें आदिवासी समुदाय के मुख्यमंत्री का नारा और उसे बताने का काम हर मंच से किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी रैलियां हुईं, उन सभी में विष्णुदेव साय को लेकर हर बार आदिवासी मुख्यमंत्री का हवाला दिया गया। मंच मजबूत था तो उत्तर भी आदिवासी समुदाय से जाना था। यही वजह थी कि जब आदिवासी वोट के लिए खुद सीएम साय चुनावी मंच पर आए तो उन्होंने जनता से कह दिया कि आदिवासियों का वोट अगर बीजेपी को नहीं गया तो आदिवासी मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा।

कांग्रेस ने भी किए जवाबी हमले
बीजेपी के उठाए आदिवासी सीएम के मुद्दे पर कांग्रेस ने जमकर तंज कसा। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी लोगों को जाति पाति के बंधनों में बांटना चाहती है। चुनावी फायदे के लिए समाज को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। विपक्ष ने तो यहां तक कहा कि नतीजों के बाद बीजेपी वास्तव में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी। खुद छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट ने कहा कि ‘आदिवासियों के वोटों के लिए जिस तरह से सीएम बयान दे रहे हैं उससे साफ है कि बीजेपी और मोदी के पास आने वाले दिनों में मुंह दिखाने के लिए कुछ नहीं बचेगाÓ। अगर सबसे ज्यादा कोई मुद्दा गरम रहा तो वह किसानों की बात रही। खुद पीएम मोदी ने किसानों का मुद्दा अपने चुनावी मंच से जोर शोर से उठाया। मोदी का मुद्दा दमदार भी साबित हुआ। छत्तीसगढ़ सरकार के सांय सांय वाली राजनीति ने खूब चर्चा बटोरी। मोदी ने विकास से चुनावी मुद्दों को शुरु किया। बाद में वो नक्सलवाद के खात्मे पर आए। बस्तर से शुरु होने वाले आयुष्मान भारत योजना का महत्व लोगों को बताया। महतारी वंदन से लेकर मंगलसूत्र तक पर सियासत के बाण छोड़े गए। मोदी ने छत्तीसगढ़ विजय के लिए पूरा दम लगा दिया।

न्याय पर रहा कांग्रेस का फोकस
चुनाव के दौरान कांग्रेस की ओर से जो बातें रखी गई उसमें सबसे मजबूत मुद्दा रोजगार का रहा। महिलाओं को लेकर एक लाख रुपए वाली महालक्ष्मी योजना रही। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े, प्रियंका गांधी सब ने इस योजना का जमकर गुणगान किया। कांग्रेस ने जनता को अपनी ओर करने के लिए ये भी नैरेटिव चलाया कि बीजेपी तीसरी बार सत्ता में आई तो पिछड़ों का आरक्षण खत्म हो जाएगा। बीजेपी के नेता संविधान को खत्म कर देंगे। बीजेपी के आक्रामक प्रचार से दूरी बनाने वाली कांग्रेस ने अपनी इस चुनावी रणनीति से अपने लिए जीत का मंत्र निकालने की कोशिश की। अब उसका कितना फायदा मिलेगा ये तो चार जून को पता चलेगा।