तिब्बत का न्यू ईयर सेलिब्रेशन: कोड वर्ड में भविष्यवाणी करते हैं धर्म गुरु, क्या है लोसर त्योहार


धर्मशाला। सैकड़ों पकवान और भोग। मक्खन से बने भेड़ का प्रसाद। मंत्रोच्चारण से पूरा हॉल गूंज रहा। लोग नृत्य कर रहे, झूम रहे हैं। ये तिब्बती हैं, जो अपना नया साल यानी लोसर मना रहे हैं। आज इनके धर्म गुरु यानी लामा भविष्यवाणी करने वाले हैं। ऐसी मान्यता है कि उन पर तिब्बतियों के देवता सवार हैं। आज वे जो कुछ कहेंगे, उसे कोई टाल नहीं सकता, तिब्बत की सरकार भी नहीं।

आज पंथ सीरीज में तिब्बतियों के न्यू ईयर यानी लोसर की कहानी…

लोसर के तीसरे दिन पूजा के दौरान लामा और मॉन्क।
लोसर के तीसरे दिन पूजा के दौरान लामा और मॉन्क।

वक्त सुबह के 6 बजे। जगह हिमाचल प्रदेश का मैकलोडगंज। आज लोसर के तीसरे दिन की खास पूजा है। लो यानी नया और सर यानी साल। पूजा के बाद तिब्बतियों के धर्मगुरु भविष्यवाणी करेंगे। इसी भविष्यवाणी के आधार पर तिब्बती लोग अपनी सामाजिक और राजनीतिक रणनीति तैयार करेंगे।

पूजा सुबह 7 बजे शुरू होनी है। इसके लिए मुझे होटल से करीब 200 मीटर के सुनसान देवदार के पेड़ों से ढके रास्ते होकर जाना है। यहां कोई गाड़ी नहीं चलती। मैं पैदल ही निकल जाती हूं।

जब मैं पहुंची गद्दे बिछाए जा चुके थे। नेचुंग मॉनेस्ट्री से लामा (तिब्बतियों के धर्म गुरु) और मॉन्क आ चुके थे। तरह-तरह के साज बज रहे थे। पूछने पर उन्होंने मुझे उसकी धुन मुझे समझाई, लेकिन मैं नहीं समझ पाई। मैं अपनी भाषा में बताऊं तो शहनाई, ढोल जैसी धुनें निकल रही थीं।

सिंहासन पर पीले रंग के सिल्क का कपड़ा बिछाया गया था। उसके सामने रखे टेबल पर चटक रंग के सिल्क का कपड़ा। उसके ऊपर छोटे-छोटे दो प्याले, जिनमें शराब भरी थी। ऊपर कुछ दाने डाले गए थे। मैंने एक लामा से इन दानों के बारे में पूछा, तो उन्होंने मुझे कुछ दाने खाने के लिए दिए। स्वाद एकदम कड़वा था।

तिब्बतियों के धर्म गुरु पहली पंगत में बैठे पूजा कर रहे हैं।
तिब्बतियों के धर्म गुरु पहली पंगत में बैठे पूजा कर रहे हैं।

पहली पंगत में सिंहासन पर नेचुंग यानी तिब्बतियों के देवता बैठे थे। उसके बाद तीन बड़े धर्म गुरु और साज बजाने वाले विराजमान थे। लगातार मंत्रोच्चारण हो रहा था। बीच में ढोल की धीमी थाप दी जाती थी। तकरीबन 6 फीट लंबे नगाड़े बजाए जा रहे थे। यह सिलसिला 7 बजे से लेकर 9.30 बजे तक चला।

एक घंटे के बाद डेजी और चाय पहले लामा और मॉन्क को दी गई। फिर दूसरे लोगों को। डेजी एक तरह का प्रसाद है, जो मेवे, चावल, चीनी और मक्खन से बना होता है। इसका स्वाद लाजवाब था। डेजी और चाय के बाद फिर से मंत्रोच्चारण की शुरुआत हुई।

तिब्बती महिलाएं प्रसाद बांट रही हैं।
तिब्बती महिलाएं प्रसाद बांट रही हैं।

अब धर्म गुरु तरह-तरह की भाव-भंगिमा बनाते हैं। डमरू बजाते हैं। लामा और मॉन्क उनकी तरफ चावल फेंकते हैं। इस भाव-भंगिमा को आम इंसान नहीं समझ सकता। ये उनका कोर्ड वर्ड है, जिसे गिने-चुने लामा ही समझ सकते हैं। इसी कोर्ड वर्ड के जरिए वे नए साल की भविष्यवाणी कर रहे हैं।

दरअसल तिब्बतियों के धर्मरक्षक देवता नेचुंग हैं। तिब्बतियों का ऐसा मानना है कि इस दिन नेचुंग धर्म गुरु के शरीर में प्रवेश करते हैं। वे ही धर्म गुरु के जरिए ये बताते हैं कि आने वाले साल में क्या-क्या दिक्कतें रहेंगी और उनसे बचने के लिए क्या उपाय करने होंगे। इस प्रोसेस को नेचुंग ऑरेक्ल मीडियम कहा जाता है।

इनकी धुन हर कोई नहीं समझ सकता है। गिने-चुने तिब्बती ही इसे समझ पाते हैं।
इनकी धुन हर कोई नहीं समझ सकता है। गिने-चुने तिब्बती ही इसे समझ पाते हैं।

सामने कुछ सीढ़ियां ऊपर चढ़कर तीन छोटे छोटे मंदिर हैं। इनमें एक मंदिर नेचुंग देवता का है। उनकी लाल रंग की मूर्ति है, जिसके मुकुट में इंसानी खोपड़ियां लगी हैं। मंदिर के बाहर भी खोपड़ियों जैसी आकृति बनी है।

जैसे हिंदुओं में भगवान को फूलों की माला चढ़ाई जाती है। वैसे ही इनके गॉड को सफेद चुन्नी चढ़ाई गई है। नेचुंग के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में तिब्बती समाज के लोग जुटे हैं। वे उनसे आशीर्वाद मांग रहे हैं।

इस मंदिर के बगल में खारोवो खामसुम जिलॉन देवता और एक देवी का मंदिर है। इन तीन मंदिरों से कुछ सीढ़ियां उतर कर दोनों ओर छोटी-छोटी मीनारनुमा आकृति बनी हैं, जिसमें धूणा जल रहा है।

तिब्बती इसमें हरे रंग का कुछ डालते हैं, फिर तेल और सत्तू डालते हैं। पूरे वातावरण में खुशबू फैली है। जी करता है इसकी हवा में सांस लेती रहूं। इसका धुआं जरा सा भी आंखों में नहीं लग रहा।

करीब 9.30 बजे मंत्रोच्चारण खत्म होता है। सभी लामाओं और मॉन्क के हाथ में भभूत जैसी कोई चीज दी जाती है। वे खड़े होकर इस भभूत को नेचुंग देवता की तरफ उड़ा देते हैं। इसके बाद तिब्बती झूमने लगते हैं। इनमें बच्चे, बुजुर्ग, अमीर-गरीब सब शामिल हैं।

तीसरे दिन पूजा खत्म होने के बाद पारंपरिक कपड़ों में नृत्य करती हुई महिलाएं।
तीसरे दिन पूजा खत्म होने के बाद पारंपरिक कपड़ों में नृत्य करती हुई महिलाएं।

महिलाएं पारंपरिक पोषाक में हैं। उनके कपड़ों की मैचिंग और डांस की स्टेप्स की ट्यूनिंग गजब की है। एक स्टेप भी इधर-उधर नहीं है।

यहां मेरी मुलाकात दलाई लामा के हिंदी ट्रांसलेटर कैलाश चंद्र बौद्ध से होती है। वे मुझे लोसर त्योहार के बारे में समझाते हैं। वे बताते हैं, ‘लोसर से दो दिन पहले यानी साल के आखिरी सेकेंड लास्ट डे को नीशू-गू मनाया जाता है। इस दिन गुठुक नाम का पकवान बनता है। गु यानी नौ और ठुक यानी व्यंजन। यह 9 तरह के खास व्यंजनों का बना होता है।

पूजा बाद परिवार के लोग साथ मिलकर गुठुक खाते हैं। गुठुक के अंदर कागज डालकर कुछ शब्द लिखे जाते हैं। गुठुक खाते वक्त कागज को खोला जाता है। अगर किसी के हिस्से में तलवार, चाकू जैसे शब्द लिखे मिलते हैं, तो माना जाता है कि आने वाला साल उसके लिए सही नहीं रहने वाला है। उससे बचने के लिए वह तांत्रिकों की मदद लेता है।

वहीं अगर किसी के हिस्से पूजा सामाग्री, शंख जैसे शब्द लिखे मिलते हैं, तो उसे काफी शुभ माना जाता है। अगले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है। जैसे दिवाली के दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं। उसी तरह रौनक भी होती है। लाइट्स लगाई जाती हैं। ढेर सारी खरीदारी की जाती है।

ये प्रेयर फ्लैग्स हैं, जिन पर प्रार्थनाएं और मंत्र लिखे हुए हैं।
ये प्रेयर फ्लैग्स हैं, जिन पर प्रार्थनाएं और मंत्र लिखे हुए हैं।

इसके बाद नए साल यानी लोसर की शुरुआत होती है। लोसर तीन दिनों का त्योहार होता है। पहले दिन को लामा लोसर कहा जाता है। इस दिन तिब्बती लोग घरों में ही पूजा करते हैं। वे किसी से बात नहीं करते ना ही कहीं जाते हैं। यहां तक कि अपने घरवालों से भी बात नहीं करते।

दूसरे दिन को गालपो लोसर कहा जाता है। पहले तिब्बत में रिवाज था कि इस दिन प्रजा, राजा के दरबार में जाकर उन्हें मुबारकबाद देगी। प्रशासनिक अधिकारी राजा के दरबार में जाकर सलामी देंगे, लेकिन अब ना राजा है ना प्रजा। इसलिए तिब्बती लोग दोस्तों और रिश्तेदारों को खाने पर बुलाते हैं और खुद भी दूसरों के घर जाते हैं। विदा होते वक्त एक-दूसरे को उपहार देते हैं।

लोसर का तीसरा दिन सबसे खास होता है। इसे छोई-क्योंग कहते हैं। छोई यानी धर्म, क्योंग यानी रक्षक। इसे धर्मपालक पूजा भी कहते हैं। इस दिन लहागेलरी में तिब्बत के लोग जुटते हैं। ऐसा कहा जाता है कि कुछ बड़े लामाओं पर नेचुंग देवता आते हैं। इन्हें सरकारी देवता भी कहा जाता है।

लामा कोड भाषा में तिब्बत सरकार के लिए भविष्यवाणी करते हैं। उस कोड भाषा को विशेषज्ञ ट्रांसलेट करके प्रशासनिक अधिकारियों और दलाई लामा को बताते हैं। उसी अनुसार तिब्बत सरकार पूरे साल की रणनीति बनाती है, जो पूरी दुनिया के तिब्बती मानते हैं।

भविष्यवाणी करते हुए लामा। इनके कोर्ड वर्ड को एक्सपर्ट के जरिए आम तिब्बतियों को बताया जाता है।
भविष्यवाणी करते हुए लामा। इनके कोर्ड वर्ड को एक्सपर्ट के जरिए आम तिब्बतियों को बताया जाता है।

यहां से थोड़ी दूर पर बुद्ध विहार तिब्बतियों का खास मंदिर है। जब मैं मंदिर पहुंचती हूं, तो मुझे चारों ओर चटक रंगों के कपड़े पर तरह-तरह की कलाकृतियां दिखाई देती हैं। दिखने में बहुत ही सुंदर कला। यह तिब्बत की संस्कृति और पूजा अर्चना से संबंधित हैं, लेकिन इसका मतलब गिने-चुने लोगों को ही पता होता है। वहां मौजूद लामा को भी इसके बारे में नहीं पता।

यहां महात्मा बुद्ध की मूर्ति है। सामने पानी से भरे बाउल रखे हैं। कुछ खाने-पीने का सामान भी है। उसके नीचे एक सिंहासन है, जिस पर दलाई लामा विराजमान होते हैं। जब भी उन्हें किसी सभा को संबोधित करना होता है या कोई बयान देना होता है, तो वे इसी सिंहासन पर बैठते हैं।

एक मंच पर बहुत सारे भोग रखे हैं। दूर से देखने पर लगता है कि संगमरमर की तराशी गई कोई आकृति है, लेकिन पास जाने पर पता चलता है कि ये आकृतियां मक्खन से बनी हैं। एक तिब्बती मुझे बताते हैं कि हमारे यहां मक्खन को पवित्र माना जाता है। लोसर के पकवान और भोग मक्खन में ही बनाए जाते हैं।

तिब्बतियों के देवता को तरह-तरह के प्रसाद चढ़ाए गए हैं।
तिब्बतियों के देवता को तरह-तरह के प्रसाद चढ़ाए गए हैं।

इस भोग में एक और अहम चीज है, वो है मक्खन से बनी भेड़। इसे अपनी भाषा में ये लोग लुकगो कहते हैं। तिब्बत में असली भेड़ का सिर भोग में रखा जाता है, लेकिन यहां मक्खन से बनी भेड़ प्रतीकात्मक रूप में रखी जाती है।

इसकी एक वजह है कि तिब्बती समाज में भेड़ की बहुत अहमियत होती है। जिससे ऊन, दूध, मांस, पैसा सब मिलता है। इसलिए भोग में भगवान को भेड़ चढ़ाई जाती है। भेड़ एक प्रकार से परिवार में खुशहाली का संकेत है।

इस मंच के पीछे मशहूर बौद्ध तांत्रिक आचार्य पद्मासन की मूर्ति है। माना जाता है कि इन्होंने ही तिब्बत को तंत्र ज्ञान दिया था। उनके आगे पानी से भरे बाउल रखे हुए हैं। दीप जल रहे हैं। तरह-तरह की आकृतियां उनके आसपास रखी हैं। इनके दूर से ही दर्शन करने होते हैं। कोई छू नहीं सकता।

तिब्बती महिलाओं की इस पोशाक को छुपा और कमर जो पट्टी बंधी है उसे केरा कहा जाता है।
इस पोशाक को छुपा और कमर जो पट्टी बंधी है उसे केरा कहा जाता है।

तिब्बती महिलाओं की इस पोशाक को छुपा और कमर जो पट्टी बंधी है उसे केरा कहा जाता है।

नेचुंग मॉनेस्ट्री के हेड तेंगजिंग रिनोचेम बताते हैं, ‘तिब्बत बुद्धिस्ट में पांच सेक्ट हैं। सबसे पहला और पुराना सेक्ट बॉन (bon) है। उसके बाद निगमा, साक्या, गेलो और जोनड सेक्ट आते हैं। इन सभी सेक्ट में बुद्ध के मूल मंत्र एक ही हैं, लेकिन प्रैक्टिस में थोड़ा फर्क है। हर सेक्ट के अपने गुरु हैं और उसके अनुसार उनकी मॉनेस्ट्री और रीति-रिवाज हैं।

आमतौर पर हम लामा और मॉन्क को एक ही मान लेते हैं। यानी जिसने भी लाल रंग का चोगा पहना है वह लामा है, लेकिन ऐसा नहीं है। लामा मॉनेस्ट्री मे रहकर पढ़ाई के जरिये बनते हैं, जबकि मॉन्क मॉनेस्टरी चलाते हैं। वह जन्म से ही मॉन्क होते हैं।

लामा और मॉन्क की जिंदगी आम तिब्बतियों से अलग होती हैं। मॉन्क बनने के लिए एक मॉनेस्ट्री में जाकर गुरु धारण करता होता है। वहीं रहकर पढ़ाई, मेडिटेशन, तिब्बतियन एजुकेशन, भाषा और पूजा सीखनी होती है।

लामा बनते वक्त 253 तरह के वचन देने होते हैं। ये वचन काफी कठिन होते हैं। जैसे किसी भी जीव की हत्या नहीं कर सकते। झूठ नहीं बोल सकते। चोरी नहीं कर सकते। नॉन वेज नहीं खा सकते।’