वर्ल्ड लेबर डे: सेक्स वर्कर्स के स्टार्टअप्स, जिस्म नहीं, इडली-डोसा बेच रहीं, बच्चे विदेश में पढ़ रहे

नई दिल्ली। ‘वर्ल्ड लेबर डे’ से एक दिन पहले यानी 30 अप्रैल को हजारों सेक्स वर्कर्स ने कोलकाता की सड़कों पर रैली निकाली। उन्होंने डिमांड रखी कि उन्हें भी श्रमिक माना जाए और उन्हें सेक्स वर्कर न कहकर ‘यौनकर्मी’ कहा जाए। काम छोड़ने के बाद अपना स्टार्ट अप शुरू करने के लिए सरकारी मदद भी मिले।

नई दिल्ली। ‘वर्ल्ड लेबर डे’ से एक दिन पहले यानी 30 अप्रैल को हजारों सेक्स वर्कर्स ने कोलकाता की सड़कों पर रैली निकाली। उन्होंने डिमांड रखी कि उन्हें भी श्रमिक माना जाए और उन्हें सेक्स वर्कर न कहकर ‘यौनकर्मी’ कहा जाए। काम छोड़ने के बाद अपना स्टार्ट अप शुरू करने के लिए सरकारी मदद भी मिले।

सेक्स वर्कर्स की हिम्मत और सोच की सराहना करनी होगी कि वे सड़क पर भीख मांगने के बजाय, मेहनत का रास्ता अपनाकर इज्जत की जिंदगी जीने की कोशिश कर रही हैं। कोलकाता के सोनागाछी से लेकर दिल्ली के जीबी रोड तक इस बदलाव की शुरुआत हो चुकी है।

बदबूदार जिंदगी से निकल फिनाइल की बोतलें भरतीं। बेपरदा जीवन जीने के बाद गाउन की फैक्ट्री चलातीं। उम्र से ढलती देह और चलने में तकलीफ। कस्टमर के ऑर्डर पर इडली-डोसे की प्लेट तैयार करतीं। ये सभी कभी सेक्स वर्कर्स रही हैं और आज अपने नए काम को खुद ही स्टार्ट अप का दर्जा देती हैं।

सेक्स वर्कर नहीं, हमें यौनकर्मी कहिए…

सोनागाछी। यह नाम सभी के मन में ढेरों सवाल उठाता है। भारत ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया, जहां 10 हजार से अधिक सेक्स वर्कर्स हैं। सोनागाछी में ही ‘दरबार’ संस्था है जो सेक्स वर्कर्स के लिए काम करती है।

संस्था की नेशनल सेक्रेटरी बिशाखा लसकर से जब भास्कर संवाददाता ने फोन पर बात की तो उन्होंने कहा, ‘आमी एकजना यौनकर्मी, नेशनल सेक्रेटरी। यौनकर्मी अधिकार ओ मर्यादा जन लड़ाई’। यानी मैं एक यौनकर्मी हूं। यौनकर्मियों के अधिकार और सम्मान की लड़ाई लड़ रही हूं।