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zoonotic diseases : नयी दिल्ली ! सरकार के लिए ज़ूनोटिक रोग एक प्रमुख चिंता का विषय है जो मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव सुधांश पंत ने मंगलवार को यहां
‘zoonotic diseases : मानव-वन्यजीव – संवर्धित जूनोटिक रोग निगरानी’ और ‘सर्पदंश के विष की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य भाषण देते हुए कहा कि
पिछले तीन दशकों में लोगों को प्रभावित करने वाली नई उभरती संक्रामक बीमारियों में से 75 प्रतिशत ज़ूनोटिक है।
उन्होंने कहा कि मानव और पशु दोनों दृष्टिकोण से बीमारियों का निदान करना महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश उभरती संक्रामक बीमारियाँ बदलते मानव-पशु के संपर्क का परिणाम हैं। उन्होंने कहा कि ज़ूनोटिक रोगों की पहचान करने के लिए सीमित ज्ञान और कौशल के साथ-साथ सभी स्तरों पर सीमित निदान सुविधाओं के अभाव में ज़ूनोटिक रोगों के कारण होने वाले संक्रामक रोगों की उपेक्षा हुई है।
श्री पंत ने कहा कि जूनोटिक बीमारी के कारणों और तंत्रों की बेहतर समझ भविष्य में होने वाली बीमारी के प्रकोप की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है। कोविड -19 महामारी के प्रभाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मानव और पशु दोनों दृष्टिकोण से बीमारियों का निदान करना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि ज़ूनोटिक रोगों के उद्भव के अलावा, एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) भी विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण खतरे के रूप में उभरा है। उन्होंने कहा कि मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया का तेजी से प्रसार और कार्बापेनेम्स जैसे नए और अधिक शक्तिशाली रोगाणुरोधी एजेंटों के कारण होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए नए एंटीबायोटिक दवाओं की कमी मानव स्वास्थ्य के लिए तेजी से बढ़ रहा खतरा है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इसी तरह, खाद्य जनित बीमारियाँ जो खराब स्वच्छता, रोगाणुरोधी दवाओं की उपलब्धता, पर्यावरण प्रदूषण और खेतों पर पशुपालन संबंधी जैसे एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग भी एक महत्वपूर्ण खतरा हैं।
श्री पंत ने कहा कि सर्पदंश का जहर जीवन के लिए खतरा है और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है क्योंकि देश पर इस बीमारी का एक बड़ा बोझ है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर सर्पदंश के मुद्दों और चुनौतियों से निपटने के लिए एक समर्पित ढांचा होना महत्वपूर्ण है।