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रायपुर ( न्यूज़)। छत्तीसगढ़ की 11 सीटों पर तीन चरणों में चुनाव सम्पन्न होने के बाद राजनीतिक दल जनता का मूड़ भाँपने में जुटे रहे। अब जो रिपोर्ट इन दलों के आला नेताओं के पास पहुंची है, उसने कई तरह के संकेत दिए हैं। राज्य की कई सीटों पर उलटफेर की संभावना भी जाहिर की जा रही है। वहीं कुछ सीटों में मुकाबला इतना कड़ा बताया गया है कि नतीजा कुछ भी हो सकता है। हालांकि बीजेपी सभी 11 सीटें जीतने के अपने दावे पर अब भी कायम है। लेकिन कांग्रेस के नेताओं के चेहरों पर दिख रहा उत्साह कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार पार्टी राज्य में इतिहास रचने जा रही है। अलग राज्य बनने के बाद से अब तक कांग्रेस एक या दो सीटों पर ही जीतती रही है, लेकिन कांग्रेस को भरोसा है कि इस बार उसका रिकार्ड दुरूस्त होगा।
छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच इस बार भी सीधी टक्कर देखने को मिली। राज्य बनने के बाद वोटर्स ने सिर्फ इन्हीं दो पार्टियों पर भरोसा जताया है। इस बार भी लगभग ऐसा ही रिजल्ट सामने आएगा। तीसरा मोर्चा और निर्दलीय प्रत्याशी हर बार की तरह इस बार भी सहायक भूमिका में ही नजर आएंगे। भले ही नतीजे 4 जून को आएंगे, लेकिन जिस तरह का वोटिंग पैटर्न रहा है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि इस बार छत्तीसगढ़ में जनता का मूड कुछ नया करने का है। ऐसे में कई सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत पलटने की संभावना है। इस बार छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव में 220 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई, जिसमें सबसे ज्यादा उम्मीदवार रायपुर से 38, फिर बिलासपुर से 37, कोरबा से 27, दुर्ग से 25, जांजगीर चांपा से 18, महासमुंद से 17, राजनांदगांव से 15, रायगढ़ से 13, बस्तर से 11, सरगुजा से 10 और सबसे कम कांकेर से 9 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा।
बदल सकता है समीकरण
बस्तर में पहला चरण का मतदान 19 अप्रैल को हुआ था। जिसमें 68.29 फीसदी जनता ने वोट डाले। पिछली बार बस्तर में 70 फीसदी मतदान हुआ था। लेकिन इस बार धुंआधार प्रचार के बाद भी बस्तर की जनता वोटिंग के लिए बाहर नहीं निकली। बस्तर के ट्रेंड की बात करें तो जब-जब यहां कम वोटिंग हुई है, विधानसभा के सत्ताधारी दल को इसका फायदा मिला है। विधानसभा की बात करें तो बस्तर की ज्यादातर सीटें बीजेपी के पास हैं, ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार बस्तर में समीकरण बदल सकते हैं। वहीं, हाई प्रोफाइल राजनांदगांव लोकसभा सीट में इस बार कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े राजनीतिक खिलाड़ी को मैदान में उतारा। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव सीट से टिकट मिली थी। इस बार राजनांदगांव लोकसभा सीट में 77.42 फीसदी मतदान हुआ, जो पिछली बार के मुकाबले 3.42 फीसदी ज्यादा है। राजनांदगांव सीट की बात करें तो लोकसभा में आने वाली ज्यादातर विधानसभा सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं। सिर्फ राजनांदगांव विधानसभा ही बीजेपी के पास है। वहीं कवर्धा और पंडरिया विधानसभा सीटें बीजेपी के पाले में हैं। ऐसे में कांग्रेस का कैडर वोट पार्टी के पक्ष में गया तो इस सीट पर बड़ा बदलाव हो सकता है। हालांकि विधानसभा के नतीजों से लोकसभा की तुलना करना उचित नहीं है, क्योंकि दोनों चुनाव अलग-अलग मुद्दों और अलग परिस्थितियों में लड़े जाते हैं।
यहां भी दिख सकता है परिवर्तन
न्यायधानी बिलासपुर में इस बार कांग्रेस ने अपने युवा नेता देवेंद्र यादव को मैदान में उतारा। देवेंद्र यादव के मुकाबले बीजेपी के तोखन साहू मैदान में हैं। दोनों प्रत्याशियों की बात करें तो दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर काफी मजबूत हैं। देवेंद्र यादव जहां मौजूदा विधायक है, वहीं तोखन साहू को विधायक का भी तजुर्बा है। इस बार बिलासपुर में 64.77 फीसदी मतदान हुआ है, जो पिछली बार के मुकाबले करीब 2.50 फीसदी कम है। ऐसे में ये कहना गलत न होगा कि कहीं ना कहीं बिलासपुर के वोटर्स ने इस बार वोटिंग में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। साथ ही साथ देवेंद्र यादव पर बाहरी होने का टैग ने वोटर्स को थोड़ा उलझाया है। वहीं यदि जांजगीर चाम्पा लोकसभा सीट की बात करें तो इस सीट पर 67.56 फीसदी मतदान हुआ, जो पिछली बार के मुकाबले ज्यादा है। इस बार कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े चेहरे को जांजगीर चांपा से उतारा। वहीं बीजेपी की प्रत्याशी कमलेश जांगड़े हैं, जिनका राजनीतिक अनुभव शिव डहरिया के मुकाबले थोड़ा कम है। जांजगीर चांपा की सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस के पाले में हैं। ऐसे में यदि विधानसभा का वोटिंग फीगर बरकरार रहा तो इस सीट पर पिछली बार के मुकाबले इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
क्या कोरबा में पलटेगी बाजी?
कोरबा लोकसभी सीट में जनता अपना नेता हर पांच साल में बदलती रही है। पिछली बार यहां कांग्रेस की ज्योत्सना महंत जीतीं थी। इस बार फिर से कांग्रेस ने ज्योत्सना महंत को टिकट दिया। वहीं बीजेपी ने अपनी फायर ब्रांड नेता सरोज पाण्डेय को मैदान में उतारा। लेकिन पिछली बार के मुकाबले इस बार कोरबा में कम वोटिंग हुई। कोरबा में 75.63 प्रतिशत वोट पड़े, जो कहीं ना कहीं इस बात का संकेत दे रहे हैं कि वोटर्स ने इस बार सीटिंग एमपी के प्रति दिलचस्पी नहीं दिखाई। छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार है और यहां की विपधानसभा सीटों पर भी भाजपा बहुमत में है। ऐसे में यदि कैडर वोट का साथ रहा तो यहां पर बाजी पलट सकती है। कोरबा लोकसभा सीट परिसीमन के बाद पहली बार 2008 में अस्तित्व में आई थी। ये सीट पहले जांजगीर चांपा के के अंतर्गत थी। इस सीट पर पहली बार चुनाव 2009 में हुआ, जिसमें कांग्रेस के चरणदास महंत ने बीजेपी की करुणा शुक्ला को हराया था। 2014 में बीजेपी के बंशीलाल महतो ने चरणदास महंत को हराया। कोरबा लोकसभा में आठ विधानसभा भरतपुर-सोनहत, मनेंद्रगढ़, बैकुंठपुर, रामपुर, कोरबा, कटघोरा, पाली-तानाखार और मरवाही आती है।